शनिवार, 18 मई 2013

रामकोठी

बड़े बिहनचे सुत के उठेंव, त बइला के घाँ घरा के अवाज अउ गोहार पारत अँगना मा आके पुनतू, सुनतू, दुकालू अउ सुकालू काँवर मा पचकठिया टुकना दुनों कोती धरे अउ काँवर ला उतार के गाय लगिन- ‘छेरिक छेरा छेर बरतनीन छेर छेरा...माईं कोठी के धान ला हेरहेरा...’ अइसने कहिके नाचे लगिन, त मँय हा पूछेंव- कस सँगवारी हो..! तुँहर घर बने भरे बोजे हाबय तब ले तुमन काबर अइसने माँगत हव, अइसन मंगइ बने बात नोहे, तब ओमन किहिन- सुन भइया..! हमन माँगत हन, त अपन बर नइ माँगत हन, आज छेरछेरा पुन्नी आय, आज के दिन पछिना चुचवा के जेहा अपन जॉंगर टोर के अनपरमेसरी ला दान करथें अउ परमारथ मा लगाथे ते भागमानी पुन कमाथे, ए हा छोटे बड़े के बात नइ हे, तहूँ कोनों हमर घर आबे, त हमूमन देबो- तारा रे तारा पीतल के तारा... झटकुन दे दे जाबो दुसर पारा... डलिया मा धान पाके नाचत-गावत मुचमुचावत-मेंछरावत चल दिन। 

वइसने छेरछेरा माँगत चारों झन के डलिया भरगे अउ बेचके दु हजार अकन रुपिया सकेल डरिन, अइसनेच हर बछर माँगत-माँगत उँखर मन कना गजबेच अकन रुपिया सकलागे, त सोंचे गुने लगिन... ए रुपिया ला कोनों चारों सँगवारी बाँटबोन, त दु-दु हजार रुपिया पाबो, त ए रुपिया ला कोनों गाँव के सियान कना धरा देबो अउ कोनों गरीब के भला कर देबो, त उँखर बनौकी बन जाही, अइसे कहिके ये बात ला गाँव मा ढिल दिन, त गाँव के सरपंच, पटैल, कोतवाल के कान मा ये बात परिस, त सियान मन बइटका सकलिन अउ उँखर चारों झन के बात ला रखिन, त तिहारू कथे- ये गोठ बड़ अच्छा हे..! अइसने कोनों गाँव भर के हिरदे मा बात आ जही अउ पइली, दु पइली अन परमेसरी ला दीहीं, त अड़बड़ अकन अनाज सकला जही अउ पुनतू, सुनतू, सुकालू के सकलाय रुपिया के रामकोठी बन जही अउ ओ कोठी मा अनाज ला भर देबो, त हमर गाँव के सोर जगजाहिर हो जाही अउ गाँव मा जउँन मन ला जरुरत होही एमा के अनाज ला देबो, त ओखर बनौकी बन जही। ये गोठ सब ला बने सुहइस, रामकोठी बनगे अउ गाड़ा भर धान सकलागे, काबर केहे गेहे- ‘बूंद-बूंद मा घड़ा भरथे, कनकन मा धन बाढ़थे’ देखते-देखत सुरुजपुर के रामकोठी के गोठ हा सबो डाहर पसरगे, गाँव मा गोकुल नाँउ निच्चट गरीब रिहिस, गँवईं भरोसा ओखर जिनगी चलय, बड़ अकन लोग लइका रिहिस, ओखर एकझन बेटा माधो घला गिरे गिरहस्थी के सेती नइ पढ़िस अउ अपन ददा संग गँवईं कमाय लगिस। सजवा-पेटी धर के गउँटिया के चवँरा मा बइठके साँवर बनाय। 

एकदिन स्यामलाल गुरजी के दाढ़ी मा माधो के कोंवर-कोंवर हाँथ बड़ सुघ्घर लगिस, बड़ परछिन के साँवर माधो बनइस, त गुरजी हा ओला पाँच रुपिया साँवर के उपर दिस, त माधो गुरजी के गोड़ तरी गिरगे। तब स्यामलाल गुरजी हा माधो ला पूछथे- कस माधो..! कुछु दु आखर पढ़ सकथस का ? त माधो के आँखी डबड़बागे कथे- गुरजी मँय नइ पढ़ पाँयेंव काबर दिन मा कमा अउ रात मा खा तइसे बात ताय। तब गुरजी पूछथे- का मँय पढ़ाहूँ, त पढ़बे ? माधो कथे- गुरजी..! बिन ददा ला पूछे नइ बता सकँव। बाप-बेटा गँवईं कमाथन, त पइली-दु पइली अनाज हमर जिनगी के सहारा आय। गुरजी किहिस- तँय संसो झन कर..! इतवार के दिन तोर ददा संग हमर घर आ जाबे, मँय हा समझा दुहूँ। ठउँका इतवार के दिन गोकुल अउ माधो गुरजी के घर पहुँचगे। गुरजी हा उँखर खुब सेवा सतकार करिस, चहा-पानी दिस अउ कथे- ले बता ठाकुर..! का तँय हा अपन लइका माधो ला पढ़ाबे ? ओखर सरी बेवस्था हो जही। गुरजी तुँहर अतका सुघ्घर बानी हा मोर अंतस के पीरा ला हर दिस, का होही अँधरा चाहे दु आँखी। गुरजी किहिस- सुन ठाकुर..! हमर गाँव सुरुजपुर मा रामकोठी हाबय, सियान मन ला घलो ये बात ला बताहूँ, उहाँ ले घलो थोर बहुँत सहारा मिल जही। ठीक हे गुरजी..! कहिके गोकुल, माधो चल दिन, त गुरजी हा गाँव के सरपंच, पटैल अउ कोतवाल ला जम्मो बात ला बतइस। 

एकदिन कोतवाल बिसौहा हाँका पारथे- काली इतवार के गुड़ी चवँरा मा सकलाना हे...हो...! इतवार के दिन बइटका मा गोकुल, माधो कलेचुप बइठे राहय। सरी गोठ ला गोकुल ला पुछिन, त बनत ठउँका देख के बताथे, त स्यामलाल गुरजी किहिस- मँय हा पढ़ाय के जवापदारी लेवत हँव। गोकुल ठाकुर ला रामकोठी ले दु खाँड़ी अन दिन, गोकुल मारे खुसी के अपन दुवारी में जाके अपन परानी मेहतरीन कना नाचे ला लगिस। स्यामलाल गुरजी के एकझन बेटा रिहिस तउन हा सरकारी नउकरी मा अपन सबो परिवार संग आने जगह राहय। माधो ला इसकूल मा भरती कराइस। माधो मन लगाके पढ़े लगिस अउ अपन किलास मा अव्वल नंबर मा पास होय लगिस। 

रोज रतिहा स्यामलाल गुरजी घर जाके सेवा घलो करँय, त गुरजी अउ गोकुल मा मयाँ हा किसन अउ संदीपन कस होगे। जब गोकुल बारवीं कक्छा मा पहिली नंबर मा पास होइस, त ओखर सममान सुरुजपुर मा गजब होइस अउ सुरुजपुर मा ओखर गुरजी होय के परवाना आगे। परवाना ला धर के स्यामलाल गुरजी के गोड़ मा गिरके पाँव परिस, गुरजी हा ओला अपन छाती मा लगालिस- जुग-जुग जी बेटा..! दूधे खा दूधे अँचो..! गाँव के नाँव ला उजियार करबे..! 

गोकुल जब पहिली पगार नउकरी के पइस, त गुरजी ला देथे, त गुरजी हा माधो ला धर के गोकुल कना गिस, त माधो के पहिली पगार ला गोकुल ला दिस, त गोकुल के छाती फुलगे अउ गुरजी के पाँव मा गिरगे, किहिस- गुरजी तुँहर जय हो..! तुँहर सरी कोनों सबो आदमी होगे, त गाँव अँजोर हो जही। 

स्यामलाल गुरजी के जब नउकरी पुरगे अउ घर बइठगे, त माधो कथे- गुरजी के बेटा हा नउकरी मा आने जगह हे, त मोर धरम हे गुरजी के सेवा करना। माधो अपन धरम निभाय, त गुरजी कथे- देख माधो..! ये सरीर के भार तुँही ला हे, काबर बहू-बेटा इहाँ नइ हे हे। माधो, बेटा सहिन गुरजी के सेवा करिस। एकदिन गुरजी सिढ़िया ले उलंडगे अउ ओखर परान पखेरु उड़गे। तब गुरजी के सरी किरियाकरम के जोखा माधो करे लगिस, संदेसा सुन के गुरजी के बेटा रामपरसाद अइस, त माधो के सेवा ला देख के कथे- माधो..! हम पाप के बेटा आन तँय धरम के बेटा आस, तोर करे सेवा ला हम नइ भुलावन, तँय मोर पीठ के भाई अस अउ मोर बाप के सम्पति मा तोर हक रही। माधो किहिस- भगवान के दया ले गुरजी मोर जिनगी बनइस, मोला अउ कुछु नइ चाही, गुरजी के बस एकठन फोटू मोला दे देतेव, मँय अपन मुड़सरिया कना ओखर फोटू ला रखहूँ। सुरुजपुर गाँव मा एकठन भवन लइका मनके पढ़े खातिर बनवइस अउ वो भवन के नाँव स्व. स्यामलाल गुरजी भवन रखिस अउ गुरजी के उपकार ला कभू नइ भुलइस।

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आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!