शनिवार, 18 मई 2013

पुरखा के बाना

रामू अड़बड़ सिधवा मनखे राहय, मानुस चोला पाके बिर था नइ गँवाना चाही, ये बात के ओला गजबेच खियाल राहय। एखरे सेती सब झन ला राम रमउव्वल करय। ओखर गुरतुर-गुरतुर बोली जउँन सुनँय, तउन मन काहय मनखे होय, त रामू गंधर्व कस, सरी गाँव मा सबो झन ओला गजबेच मयाँ करँय। जेखर अँगना-दुवारी मा ओहा चल देतिस, त बिन चहा-पानी के ओला नइ भेजय। जउँन कना कोनों बइठ जतिस, त सरी लइका मन ओखर कना झुम जतिन अउ काहय लेन कका कहनी सुना। रामू ला कका सब्बो गाँव के लइका मन काहय अउ ओला घेर के बइठ जावय। कतको गुन रामू मा रिहिस। आनी-बानी के बोली, पुरखा के दफड़ा, ढोल राहय तेला अड़बड़ सुघ्घर बजावय। ओखर घरवाली रेवती ला ये सब बने नइ लागय, ओहा काहय- बिन जॉंगर टोरे कोनों थोरे पोंस दीही। थो था चना बाजे घना, का काम के। रामू ला अपन घरवाली के बोली ह, गोली कस लागे। काम के ना धाम के सौ मन अनाज के फोकटे-फोकटे ओसाना अउ कमाना ना धमाना। आज के जमाना पइसा के जमाना हे, जेखर कना पइसा हे तेखर दुनिया मा कदर हे। पुरखा के बाना अब काम नइ आवय। तइहा के बात ला बइहा लेगे। रामू के दु झन बेटा रिहिस मंगलु अउ दीनू। यहू मन अपन ददा कस निकले लगिन। दु-चार किलास पढ़िन तहँ ले पढ़ई ला बंद कर दिन। केहे गेहे ‘जइसन-जइसन ददा-दाई, तइसन-तइसन लइका, जइसन-जइसन घर-दुआर तइसन-तइसन फइरका।’ 

रोज बिहनचे उठ के ढोल धर के गाँव के चौपाल मा बइठ के किस्सा कहानी सुनाना अउ भजन गाना, रामू सबके मन ला मोह डारे। रोज कोरी भर पइसा रुपिया जोरे लगिस अउ ओखर पेटी (हरमोनियम) खरीद डरिस। तब तीनों झन बाप-बेटा गावे-बजावे। अड़बड़ रुपिया पइसा कमाय लगिन, अब तो घुरुवा के दिन बहुरगे तइसे होगे। कुरिया, अटारी अउ दु खाँड़ी के धनहा ओखर आड़ी पूँजी होगे। छट्ठी, बिहाव मा रामू ला गाँव के मन बलाय लगिन। एकदिन रेवती कथे- मोर बर सोनहाँ खुँटी ले देतेव। सोनहाँ खुँटी काबर, चाँदी के सुँता घलो ले दुहूँ, थोरिक धीर लगा के काम करे बर परही। हमर दुनों टुरा मन बिहाव करे के लइक होगे हे, ददा-दाई के करजा ला उतारबे तब तो, जनम देय ले का होही, जिनगी पहात जावत हे। देवबती गाँव के गोपाल के दुनों बेटी ला अपन दुनों बेटा बर-बिहाव करके ले आनिस। अब घर हा सरग कस लागे लगिस। रेवती ला का पूछबे दु बहु का अइस फुरसत पागे। सुम्मत के गठरी जादा दिन नइ बँधाय राहय। दीनू के बहुरिया सुखिया अउ मंगलू के बहुरिया दुखिया मा तनातनी सुरू होगे। नान-नान बात हा सेमी कस बाढ़े लगिस। जादा भड़ँवा होथे तहाँ ले बाजबे करथे। रात दिन हरहर कटकट सुरू होगे, त रेवती हा कथे- अलग-अलग कर देतेन, त बने हो जतिस। गाँव के चार झन सियान ला बला के दुनों बेटा-बहू ला अलग कर दिस। एक खाँड़ी के धनहा अउ एकठन कुरिया मा रामू अउ रेवती गुजर बसर करे लगिन। रामू अपन पुरखा के बाना ला नइ छोड़िस। दीनू अउ मंगलू खेती-खार मा कमाय बर लगगे। रेवती के रतिहा के नींद अउ दिन के चैन सिरागे, तन हा हाँड़ा लगे लगिस, पेट भर खा अउ लात तान के सूत बछर भर होगे सिरागे। 

सब्बो दिन बरोबर नइ होवय सुख-दुख लगे रथे। दीनू बने खाय कमाय लगिस, त मंगलू घर दलिदरी समागे। दवा-दारु मा सरी कमइ उरके लगिस। दिन खातिन, त रतिहा उपास रही जतिन। बासी पेज खा के जिनगी पहाय लगिस। एकदिन मंगलू अउ दुखिया कमाय बर खेत-खार गे रहिन, त उँखर दुनों लइका, सुरुज अउ चमेली के पेट मारे भूख पियास के पोट-पोट करत राहय। रामू दुनों बेटा कना जाके सोर संदेसा लेवत राहय, दाई-ददा के मन नइ मानय, काबर के मुर ले जादा पिंयारा सुद होथे। मंगलू के डेरउठी मा गिस, त दुनों लइका ला कलपत देखिस, उँखर कलपइ ला नइ सहे सकिस अउ चमेली ला अपन घर ले आनिस। गरु-गाय के ओइलती जब मंगलू अउ दुखिया अइस, सुरुज-चमेली ला घर मा नइ देखिस, त सन्सो मा परगे। ओतका मा परोसिन मन बताइन- तोर टुरा-टुरी ला रामू अपन घर लेगे। तब मंगलू अपन ददा कना जाके कथे- टूरा-टुरी मन हा आये हे का गा..! रामू हाँ कथे। मंगलू कथे- आज बिन पीटे ओमन ला नइ राँहव। रस्सी जर जथे, फेर अँइठ नइ जावय, तइसे ताय। ओतका मा सुरुज अउ चमेली डररावत कथे- हमन अपन डोकरा बबा अउ डोकरी दाई ला छोड़ के नइ जावन। अपन मुहूँ करे मंगलू लहुट गे। रामू दुनों लइका मन ला भरती कराइस अउ आठ हाँथ बीजा के नव हाँथ खीरा कस होगे अउव्वल नम्बर मा सुरुज अउ चमेली अपन-अपन किलास मा पहिली नम्बर मा पास होगे। अब तो बड़े इसकूल के बड़े किलास मा पढ़े बर लगिस। रामू हा संझा जुआर दुनों लइका मन ला बइठार के पेटी (हरमोनियम) ढोल बजा के राजा हरिसचंद, सरवन कुमार अउ मोरजधज राजा के क था सुनाय लगिस। दुनों लइका मन उप्पर क था के असर होय लगिस। सुरुज अपन इसकूल मा सुतंतरता-दिवस के उछाह मा भाग ले लिस। ओकर राग अड़बड़ सुघ्घर रिहिस। सुतंतरता-दिवस के दिन जब लइका मन के कार्यकरम होइस, त सुरुज पेटी बजा के गइस- ‘मोर छत्तिसगड़ के भुईंया मा चिरईया बोले ना, मोर भारत माता के भुईंया मा चिरईया बोले ना’ इसकूल के लइका मन अउ गुरजी मन जब गाना सुनिन, त सुरुज ला अड़बड़ इनाम दिन। जब अड़बड़ अकन इनाम ला लेके अइस, त रामू के आँखी ले आँसू ढरक गे। मोर सुरुज हा हमर खानदान के सुरुज बनगे, धुर्रा फेंकय अउ चंदन अस बनगे, तइसन बात ताय। रामू कथे- सुन सुरुज..! चल रयपुर जाबो। रुपिया पइसा ला धर के रामू अउ सुरुज रायपुर पहुँच के पहली बड़ जन होटल मा जाके पलेट-पलेट भर जलेबी अउ आलुगुंडा खइन अउ बाजावाला के दुकान मा जाके ढोल, पेटी (हरमोनियम) खरीदिन अउ खरीद के घर अइन। 

पढ़ई के संगे-संग सब्बो गाना बजाना सुरुज सिखिस अउ अपन पुरखा के बाना ला अपना डरिस। एकदिन रामू हा कथे- सुन सुरुज..! जउँन हा जनम देहे हे ओखर सेवा करना चाही, बेटा..! तँय हा मंगलू के धन आस, चल आज तुमन ला पहुँचा देथँव। सुरुज, चमेली ला रामू हा लेके मंगलू अउ दुखिया कना गिस, त मंगलू अउ दुखिया अड़बड़ पछतइन अउ अपन बेटा-बेटी ला छाती मा लगा लिन अउ दुनों परानी रामू के गोड़ मा गिर पड़िन, छमा माँगिन। मंगलू हा सुरुज ला ओखर ढोल, हरमोनियम ला देख के कथे- ये काए सुरुज..! सुरुज कथे- ये ढोल अउ हरमोनियम हरे, हमर पुरखा के बाना, हमन ला कभु अपन पुरखा के बाना ला नइ छोड़ना चाही। कोन जनी कतका बेर काम आ जही। रामू उलटे पाँव लहुलटत राहय, त सुरुज अउ चमेली अपन बबा ला एकटक देखिन, त मंगलू दँउड़त-दँउड़त जाके अपन ददा के गोड़ धर के रोय लगिस। ददा मँय हा परबुधिया आँव, मोला माफ कर देबे। अब मँय हा तुमन ला नइ छोड़ँव। रामू अउ रेवती ला अपन घर ले आनिस अउ जुर-मिल के रेहे लगिस। सुरुज हा रायपुर जाके संगीत इसकूल मा संगीत के गुरजी होगे। सुरुज कना सिखइया-गवइया आय लगिन। एक बेर रामू हर सुरुज ला देखे बर ओखर इसकूल मा गिस, त सुरुज सिखात राहय- ‘मोर छत्तिसगड़ के भुईंया मा चिरईया बोले ना...’ रामू के आँखी डबडबागे अउ कथे- सुरुज हा हमर कुल के सुरुज बनगे गा..! अब तो रामू अउ रेवती दुनों बेटा-बहु संग सुम्मत से रेहे लगिन। नाती-नतरा संग रामू लइका बन जावय अउ क था पुरान के किस्सा सुनाय लगिस। सुरडोंगर गाँव के सब्बो नर-नारी मन हाट-बाट मा गोठियाय अउ काहय, ऐदे बने बनौकी बनगे, गौकी रामू के नाँव जग जाहीर होगे। 

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आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!