बुधवार, 10 जुलाई 2013

Ram

राम दरबार की महिमा न्यारी होता कोई निराश नहीं  ।  
सुर, नर, मुनि, पशु, पक्षी की भी सुनी जाती गुहार यहीं ।।  

आरत, दीन-मलीन को आदर, दरबार की उनके रीति यही ।  
गुनगन विरद संतोष कहें रघुनाथ अनाथ के नाथ सही ।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

भारतीय गणना

आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!