शनिवार, 5 अप्रैल 2014

सुरता

सुरता आथे महू ल बही, तोर संगे संग रेंगे के बात ।


नरवा तीर के कुआँ, बोर, अउ बारी के कॉंटा पलानी

तरिया पार के बर छइहॉं, बमरी बोइर अउ आमा चानी

जड़काला के रउनिया कस हॉंसी म

घेरी बेरी मरे के बात...



बँइहा ल सुपेती कस रउँद डरे

मया के अंचरा ल ओढ़ाके ।

परागेस, पर के जिनिस कस

जरहा रोटी जस जिनगी ल झँवा के ॥

ठट्ठा-मट्ठा म फुग्गा कस मुहू फुलाए

पिनपिनही कस रोवस घात...



आँखी के पुतरी कस अपने अपन नाचत राहस,

सुरता करके बही जस, कट्ठल-कट्ठल के हॉंसत राहस ।

जउन गली जावँव मय ह, लागे,

रधिया कस झॉंकत राहस ।

आँखी, अँगठी अउ अनार कस दॉंत मन

लागथे विरहा म राक्षस कस जात....

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