शोले का मशहूर डायलॉग था जब रात को बच्चा रोता है तो मां कहती है सो जा बेटा नहीं तो गब्बर सिंह आ जाएगा। कुछ ऐसा ही जुमला सारे दल नरेंद्र मोदी के बारे में बोल रहे हैं। ऐसी आशंकाएं जताई जा रही हैं मानों नरेंद्र मोदी के सत्तानशीन होते ही देश पर आसमान फट पड़ेगा, बिजलियां टूट पड़ेंगी, धरती हिल जाएगी। कांग्रेस हो, सपा हो, बसपा हो, वामपंथी हों इस मामले में सभी एक स्वर से कोरस गा रहे हैं। उनकी वाणी कुछ ऐसी है मानों मोदी के आते ही संविधान की धज्जियां उड़ जाएंगी, मजहबी एकता का शिराजा बिखर जाएगा, भारत अल्पसंख्यकों से विहीन हो जाएगा। सबसे ज्यादा भयादोहन मुसलमानों का किया जा रहा है।
भाजपा का विरोध करते-करते दूसरी सियासी पार्टियों ने शर्मनाक ढंग से मुसलमानों को कमअक्ल, बेवकूफ और सिर्फ वोटों की टकसाल समझ लिया है, जो मोदी विरोध के नाम पर उनके वाग्जाल में हमेशा की तरह फंस जाएगा। आप मुसलमानों को क्यों नहीं बताते कि पसमांदा लोगों के विकास के लिए आपकी क्या योजना है। उन्हें आप कैसे शिक्षा और दूसरे क्षेत्रों में बराबरी का मौका दिलाएंगे? । जिनका खुद का इतिहास दंगाई रहा है वह मोदी को बड़ा दंगाई बता रहे हैं। कोई मुसलिम उलेमा-गुरुओं के चक्कर काट रहा है । लब्बे-लुआब यह कि सभी वोटों की फसल काटना चाहते हैं। यह सामान्य सिद्धांत है कि जब किसी चीज का जितना प्रतिरोध होगा वह उतनी ही ताकतवर होती जाएगी। मोदी का विरोध ही उनकी ताकत है। इस बार हर सियासी दल मोदी के पीछे पड़े हैं। इसी वजह से वह बेहद शक्तिशाली नजर आ रहे हैं। ऐसा माहौल बना है कि मानों सभी का मुकाबला मोदी से है। यही मोदी की कामयाबी है।
यह अद्भुत चुनाव है, जिसमें मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं हो रही, ये सिर्फ पार्टियों के घोषणापत्रों में हैं। दुर्भाग्यवश यह चुनाव भी दुरभिसंधियों, आरोपों-प्रत्यारोपों, घपलों, घोटालों, कीचड़, रोशनाई, मुक्के-थप्पड़ , गाली-गलौच, तेरी कमीज मेरी से ज्यादा मैली है , के बीच सिमट कर रह गया है। कोई अपने प्रतिद्वंद्वी को टुकड़े-टुकड़े करने की बात कह रहा है तो कोई बदला लेने तो कोई आस्तीन चढ़ाकर चुनाव बाद देख लेने की बात कर रहा है। यह क्या हो रहा है। अगर चुनाव को युद्ध भी मान लें तो युद्ध के भी एक नियम हैं। युद्ध अंतरराष्ट्रीय कानून में और सिविलाइज्ड देशों में प्रतिबंधित है। आप सिर्फ आत्मरक्षार्थ ही बल प्रयोग कर सकते हैं। लेकिन चुनावी समर में ज्यादातर वार कमर के नीचे ही होते हैं।
किसी भी राष्ट्रीय नेता की जुबान पर राष्ट्रीय मुद्दे नहीं आते। कोई अपने भाषणों में यह नहीं कहता कि विनिर्माण क्षेत्र में चीन से मुकाबला करने के लिए उनके पास क्या ब्लूप्रिंट है। है कोई नीति जो बच्चों के हाथों में भारतीय फैक्टरियों में बने खिलौने दिलवा सके, दिवाली पर भारतीय कारखानों में बने झालरों और लट्टुओं को दीवार पर टंगवा सके। किसी दल के पास है क्या कोई ऐसी पॉलिसी जिससे दूरदराज के गांवों तक सड़कें और स्वास्थ्य सेवाएं पहुंच सकें? हर साल करोड़ों मोबाइल खरीदने वाले इस युवा देश में युवाओं के हाथों में मेड इन इंडिया का लेबल चस्पा हुआ मोबाइल खरीदवा सके? है कोई दल जो वादा कर सके कि भारतीय शैक्षिक इदारों को दुनिया भर में सबसे फिसड्डी बनने से रोक सकेगा? पहले भारत के आईआईटी दुनिया के सबसे अच्छे शिक्षण संस्थानों में से एक थे, अब टाप 400 में नहीं हैं।
मोदी-मोदी रटने से लोगों के मसले और देश के मसला हल नहीं हो पाएंगे। भगवान भरोसे जी और मर रहे करोड़ों किसानों और मजदूर सियासी बहस में कहां हैं? निरंतर घटता जा रहा लिंग अनुपात आपकी चिंता का विषय क्यों है? महिला अधिकारों की जुबानी हिमायत करने वालों ने चुनावी संग्राम में उन्हें इतने कम टिकट क्यों दिए। सरकारी स्कूलों का स्तर कैसे सुधरेगा? सरकारी अस्पतालों में मरीज का बेहतर इलाज कैसे हो सकेगा? कोई दवा के बगैर नहीं मरेगा, यह आप कैसे सुनिश्चित करेंगे? कैसे बिना घूस दिए आम आदमी का काम सरकारी दफ्तरों में हो सकेगा? कोई सड़क बनने के बाद महीने-दो महीने में नहीं टूटेगी? कोई पुल अगली बाढ़ में ही नहीं बहेगा? ईमानदारी दिखाने पर कोई मंजूनाथ किसी माफिया का शिकार नहीं बनेगा, अब रक्षा सौदों में कोई नेता दलाली नहीं खाएगा, सवा अरब के देश में रक्षा उत्पाद कैसे बनाए जा सकेंगे, कोई वारदात होने पर आम आदमी थाने में जाकर बिना घूस दिए अपनी रपट कैसे लिखा सकेगा, यह किसी सियासी दल की चिंता का विषय क्यों नहीं है, इन मुद्दों पर सोचना बेहद जरूरी है।
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