अक्सर संगठित धर्मों की जमी-जमाई बासी परिभाषाओं, उनकी हृदयहीनता पर संवेदनशील लोग सवाल उठाते हैं। सिर्फ यह कहने से कि धर्म लोगों की अफीम है, धर्म के वर्तमान स्वरूप से मुक्ति नहीं मिल सकती। सच तो यह है कि ये तथाकथित धार्मिक लोग बलात्कारी, भ्रष्ट, राजनीति में लिप्त, हद दर्जे के लम्पट होते हुए भी हमारे ओपिनियन मेकर्स हैं। बड़ी संख्या में गृहणियां, रिटायर्ड लोग, महत्वकांक्षी लड़के-लडकियां, अपनी ही बेवकूफियों और नासमझी में फंसे लोग इन 'धार्मिक' लोगों के आगे पीछे घूमते दिखते हैं। भारतीय सब-कॉन्शस मन पर इसकी पकड़ भयंकर रूप से गहरी है।
तो ऐसे ही सोचा कि कैसा होना चाहिए एक सही अर्थ में धार्मिक व्यक्ति...एक अज्ञात सत्य की तलाश में लगा वो कितना विनम्र, ईमानदार और सच्चा और सरल हो जाता होगा। समूची कुदरत के साथ एक हो जाता होगा... कैसे समस्त विभाजनों से परहेज करता होगा... और आज हम जिन्हें धार्मिक मानते हैं, उन्हें देख कर क्रोध कम, दुःख का अनुभव ज़्यादा होता है। सोचा आपके साथ शेयर करूं...
यदि कोई सही अर्थ में धार्मिक होगा, तो सबसे पहले वह दाढ़ी बढ़ाकर, अलग किस्म के कपड़े पहन कर अलग दिखने की कोशिश नहीं करेगा। वह अपने व्यक्तित्व को लेकर एक और विभाजन का निर्माण नहीं करेगा। जैसे बाकी लोग हैं, वैसा ही दिखेगा। वह प्रश्न उठाएगा; प्रश्नों को आमंत्रित करेगा न कि उनसे घबरा कर धर्म ग्रंथों के पीछे पनाह लेगा। न ही कहानी किस्सों में उलझाएगा, न किसी रूमानी भविष्य या अतीत की यात्रा पर लोगों को ले जाने की कोशिश करेगा। वह लोगों का मनोरंजन नहीं करेगा, लतीफ़े सुना कर, भजन कीर्तन में उन्हें फंसा कर। सारे सतही खेल-तमाशों के बीच वह इशारे करेगा उन आवाजों की ओर, जो हमारी घायल दुनिया के बेढंगे शोर के नीचे कहीं दब गई हैं। हल्के, महीन इशारे करेगा और शायद आपको छोड़ देगा, अपने ह्रदय के क्रूर एकाकीपन के साथ, उस सत्य की खोज करने के लिए जिसे आप खुद के बाहर कहीं ढूंढ़ रहे हैं। लेकिन वह आपके दर्द के अहसास में आपके साथ हमेशा बना रहेगा।
जो सही अर्थ में धार्मिक होगा, वह सही अर्थ में प्रेमी भी होगा... मुदिता, करुणा, मैत्री, और उपेक्षा भाव वाला प्रेमी। आपके करीब भी, आपसे दूर भी। वह अपनी अनुपस्थिति में आपको प्रेम करेगा, आपको सिखाएगा, आपसे सीखेगा, आपका हाथ थामेगा। लेकिन अपनी अनुपस्थिति में। वह एक अर्थ में क्रूर भी होगा, आपके लिए नहीं, हर उस चीज़ के लिए जिसने इस धरती को मैला कर दिया है, हमारे हर दिन को एक न खत्म होने वाले संघर्ष में बदल दिया है, जिसने बचपन की उम्र कम दी है। ऐसी हर चीज़ के लिए वह झुलसा देने वाली एक लपट होगा। वह एक मशाल होगा। न ही उसकी कोई जात होगी, न कोई मज़हब, न कोई देश, न कोई ठिकाना। न वह कोई स्त्री होगा, न ही पुरुष। एक अपरिभाषित, अज्ञेय अस्तित्व।
सबको हैरान कर देने वाला; बस दिल में आने वाला, समझ में न आने वाला।
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