उम्मर खपना : (i) अनभवी होना। (अनुभवी होना)
रास-बरग देखत हमर तो सरी उम्मर खपगे बाबू..! हमला का सिखाबे। अभी सीखे के तोर उम्मर हे, तैं हा सीख।
(ii) सियान होना। (वृद्ध होना)
अब तो उम्मरे खपगे, गोठियाबोन तेहा लबारी हो जही नइ ते हमर पाहरो मा तुँहर अस पँच-पँच झन जवान ला पछाड़ देत रेहेन।
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