देश एवं नागरिकों की सुरक्षा के लिए विभिन्न स्थानों पर तैनात भारतभूमि के वीरपुत्रों के शहीद होने के बाद हर राखी में वे बहनें जो हमेशा अपने भाइयों की कलाई में राखी बांधती थी, अब उनकी आँखों में आँसू है, जो चेहरे रक्षा बंधन में भाइयों को देखकर चहक उठते थे, उनमें उदासी की लकीरें है, जो आरती की थाली भाइयों के लिए सजाई जाती थी वह सूनी पड़ी है। यह देखकर तो आसमॉं भी रोता होगा, मगर इन सच्चाइयों से जूझ रही उन बहनों को आज रक्षाबंधन के दिन देश का हर नागरिक सलाम करता है जो भाई के वियोग में शहीद प्रतिमा/फोटो को राखी बॉंधकर बहन होने का फर्ज अदा कर रही हैं।
ऐसी ही कहानी है:
बालोद से लगे ग्राम-झलमला के माटी पुत्र शहीद निरलेश ठाकुर की, जो अपनी बहनों का चहेता था। हमेशा अपनी मातृभूमि की सेवा और देश की हर बहनों की सुरक्षा की बात करता था 21 अगस्त 1988 में ग्राम-झलमला में पिता विष्णु ठाकुर और माँ कुमारी यह के यहाँ जन्मा निरलेश बचपन से ही पुलिस में शामिल होकर देश के लिए मर मिटने जी की बातें करता था। 21 अक्टूबर 2011 का वह काला दिन जब दरभा में नक्सलियों ने एम्बुश लगाकर सर्चिंग में निकले जवानों पर हमला कर दिया, तब निरलेश भी शहीद हो गया। तब निरलेश की दो बहनें पूर्णिमा और अगेश्वरी अपने भाई के शहीद होने पर गर्व करती है मगर हर रक्षावंधन में उनकी आँखें नम हो जाती हैं।
बालोद से लगे ग्राम-झलमला के माटी पुत्र शहीद निरलेश ठाकुर की, जो अपनी बहनों का चहेता था। हमेशा अपनी मातृभूमि की सेवा और देश की हर बहनों की सुरक्षा की बात करता था 21 अगस्त 1988 में ग्राम-झलमला में पिता विष्णु ठाकुर और माँ कुमारी यह के यहाँ जन्मा निरलेश बचपन से ही पुलिस में शामिल होकर देश के लिए मर मिटने जी की बातें करता था। 21 अक्टूबर 2011 का वह काला दिन जब दरभा में नक्सलियों ने एम्बुश लगाकर सर्चिंग में निकले जवानों पर हमला कर दिया, तब निरलेश भी शहीद हो गया। तब निरलेश की दो बहनें पूर्णिमा और अगेश्वरी अपने भाई के शहीद होने पर गर्व करती है मगर हर रक्षावंधन में उनकी आँखें नम हो जाती हैं।
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शहीद भाई की शहादत पर निरलेश की बहनें गर्व करती हैं। वहीं जब राखी लेकर प्रतिमा को बाँधती है तब पूरा गाँव रो पड़ता है। गाँव के ठीक चौराहे पर निरलेश की प्रतिमा लगी हुई है। रक्षाबंधन को जब निरलेश की बहनें घर से दिया की थाली सजाकर प्रतिमा के पास पहुँच निरलेश की प्रतिमा की आरती कर राखी बॉंध कर अपने मन को संतुष्ट कर लेती है, मगर उनकी आँखें नम हो जाती है। न जाने ऐसे कितने निरलेश हैं और है जिनकी बहनें प्रतिमा को राखी बॉंधकर रक्षाबंधन मनाती है और अपने फर्ज अदा करती है। राखी के त्यौहार में अगर सामाजिक स्तर पर बड़ी-बड़ी बातें करनेवाले लोग इन बहनों के पास जाकर एक नहीं सौ निरलेश बन सकते हैं। सौ कलाइयों की राखी की सुरक्षा की सुरक्षा मिलना इन बहनों को नसीब होगा, मगर सिर्फ बातों तक सीमित समाज के सफेदपोश लोग इन सभी से दूर रहते हैं।
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