रविवार, 10 जनवरी 2016

अब्बड़ सुग्घर हमर गाँव

मय ह नानकन रेहेंव तब के बात आय। आघु हमर गाँव म नान-नान माटी के बने छिटका कुरिया, कुँदरा बरोबर डारा-पाना, राहेर, बेसरम के काँड़ी म छबाय राहय अऊ एक-दूसर मनखे मन के घर कुरिया ह थोरकिन दुरिहा-दुरिहा म राहय। गाँव गली ह हेल्ला-हेल्ला कस दिखय। जब बरसात के पानी, बादर, हवा, बँड़ोरा आवय त कतको के घर कुरिया मन ओदर जाय, चुहई के मारे खड़ा होय के जगा नई राहत रहिच। हमर दाई-ददा मन बारों महिना घर-कुरिया ल मोची कस चप्पल-जूता बरोबर तुनत-तानत राहय। गिने-चुने कोनो मंडल गौंटिया राहय तिकर मन के घर ह बड़े-बड़े मुड़का धारन वाले राहय। हमर गाँव के दाई-माई मन रात-दिन, काम-बुता करके आवय ताहन अपन-
अपन घर कुरिया म खुसर जाए, काकरो मेर बने किसम के सुख-दुख गोठियाय बताय के फुरसत घलो नई मिलत रहिच। हमर गाँव म गुड़ी चउरा रमायन, रामलीला ग्राम पंचायत स्कूल, अस्पताल, आँगनबाड़ी, सिसु मंदिर काँही के साधन नई रहिच। हमर गाँव के दाई-दीदी, भाई-भईया मन आन गाँव म पाँच-छै कोस ल रंेगत पढ़े-लिखे बर जाय लटपट म चउथी-पाँचवी तक पढ़े-लिखे राहयं। कतको भाई-दाई मन आन गाँव म पढ़े-लिखे बर नई जान कहिके पढ़े-लिखे नई रहिच।
दूसर मन आन गाँव जाय बर सड़क नई बने रहिच फेर पैडगरी, भरर्री भाँठा ल नाहकत आय-जाय बरसात के दिन हमर गाँव मन म माड़ी भरके चिखला मन माते राहय। मच्छर, मेंचका, कीरा-मकोरा, मन कबड्डी खेलँय। दूसर म हमर गाँव म बने किसम के सुख-सुविधा के अँजोर घलो नई रहिच। बिजली-पानी के समसिया घलो राहय। ककरो घर बिजली नई लगे रहिच हमर गाँव म दू- तीन ठन मंडल गौटिया घर कुआँ राहय। हमर गाँव के दाई दीदी मन सुत-उठके बड़े बिहिनिया डोलची धरके कुआँ म पानी भरे जाय। डोलची म बड़ेक जान कुआँ के तरी के जात ले डोरी बाँधे राहय। आघु कुआँ मन म लोहा के गडगड़ी लगे राहय जउन ल चक्का काहय, डोलची के डोरी ल चक्का म लगा ओरमा दँय ताँहन डोलची ह गड़गड़-गड़गड़ कुआँ के तरी म जाके बुड़ जाय ताहन हमर दाई मन धीरे-धीरे ऊपर कोती खिंचय ताहन डोलची ल हाथ म धरके हँउला, बाँगा पानी भरँय। पानी भरई म एक जुअर घलो पहा जाय। पानी काँजी भर के काम बुता म जाय। जब हमर गाँव के दाई-माई मन ल बीमारी जुड़, सरदी, खांँसी, घाव-गांेदर होवय त गँवइहा दवाई ल खा-पी के अपन तन के पीरा ल मिटवा डरँय। गाँव में डागटर अस्पताल नई राहय। जब कोंनो ल जादा बीमारी आवय त दूसर गाँव जाय ले परय हमर गाँव के दाई-माई मन अड़बड़ दुख ल तापे हे। जबर कमईया गाँव के दाई-माई मन पथरा म पानी ओगराय म कमी नई करत रिहिस। कुछु जिनिस के मसीन नई रिहिस रात-दिन बाँह के भरोसा जिनगी ल सँजोवत राहय। काम बुता करके आतिस तहाँ धान ल ढेंकी म कुटँय कनकी ल जाँता म पिसय तब जेवन बनावय। फेर आज के जबाना देखते-देखत अइसन आगे त हमर गाँव, गली, खोर ह सरग बरोबर दिखे बर धरलिच। हमर गाँव के दाई-माई मन के खवई-पियई, पहिरई, ओढ़हई, रहई-बसई ह पुन्नी कस चंदा अँजोर होय बर धरलिस। हमर गाँव के गली-गली म तेल चुपरे कस सीमेंट के सड़क बनगे। चारों कोती चमके बर धरलिच। इसकूल, असपताल, गुड़ी, चउँरा, रामलीला रंगमंच, ग्राम पंचायत, आँगनबाड़ी, सिसु मंदिर, हाट चउँरा किसम-किसम के सुख-सुविधा हमर गाँव म मिलत हे। आज इसकूल खुले म कोनो भाई बहिनी मन पढ़े लिखे बर नई घुटत हें। जउन गरीब मनखे मन नई पढ़-लिख सकँय तिकर मन बर हमर देस के सरकार ह फोकट म पढ़हावत लिखावत हे। गरीब मन के सुख-सुविधा बर किसम-किसम के योजना फोकट म गरीब मन के बीमारी के इलाज बर स्मारट कारड जउन म फोकट म इलाज होवत हे असपताल लेगे बर 108 अबुलेंस जचकी वाले दाई बहिनी मन बर महतारी एक्सपरेस बेरोजगारी दूर करे बर रोजगारी गारंटी, वृद्धा पेंसन, अटल आवास, सौच-सौचालय घर-घर म नल जल योजना, बिजली के अँजोर खेती-बारी बर मोटर पंप कनेक्सन सस्ता म बिजली गाँव के गली-गली म कूड़ा-करकट, कचरा ल साफ-सुथरा करे खातिर स्वच्छता अभियान जीवन बीमा, बहिनी मन बर सइकिल इसकूल म दार-भात हरियर-हरियर साग-भाजी घलो इसकूल के लईका मन बर सुघ्घर योजना निकाले गेहे। गरीबी ल हटाय के खातिर कोनो भूख म झन राहय कइके दु रुपिया एक रुपिया किलो चाउर जेकर कोनो नइये तेन गरीब ल फोकट म चाउर, नून देवत हे। हमर गाँव के माटी के घर कुरिया-कुंदरा बरोबर राहय तउन मन ईटा-पथरा, सीमेंट म दिखे बर धरलिस। चारांे कोती फल-फूल हरियर रुख-राई मन ल मोह डरीस। आज हमर गाँव म गियान के अँजोर होय बर धरलिस। हमर गाँव म घर बइठे गरीबी ल दूर करे के खातिर सुख के सपना देखई या मन के सपना पूरा होवत हे। 

आज हमर गाँव सुग्घर दिखे म थोरको कमी नइये। 

हमर गाँव सुघर गाँव दिखे बर धरलिच आज। 
घर बइठे मिलत हाबय सुग्घर काम काज।।
आवव बइठजी जुड़ालव मोर मया के छाँव।
सुत-उठ बड़े बिहनिया छत्तिसगढ़ महतारी के परव पाँव।।

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नरेन्द्र वर्मा 
देशबंधु मड़ई अंक ले

अँकाल के पीरा

छत्तिसगढ़ ह अँकाल के पीरा झेलत हावय। कई जगह फसल नई होय हावय। एसो अँकाल घोसित करे के बाद राज्योत्सव ल एक दिन मनाय के घोसना करे गीस। एक दिन के राज्योत्सव म खरचा नई होईस का? एक दिन के ताम-झाम म घलो ओतके खरचा होथे। पेंडाल लगाना फेर निकालना। खरचा तो सिरिफ बिजली, पानी के बाढ़तिस। ये एक दिन भी काबर?
अलंकरन समारोह रखे गीस। छत्तिसगढ़ अकाल के मार ल झेलत हावय। हमर किसान बर अवइया बछर ह भुखमरी के रद्दा देखावत हावय। तब ये समारोह काबर? येमा खरचा नई होईस का? अलंकरण ल एक बछर बर रोके जा सकत रिहिस हे। 2-2 लाख रुपिया देय गीस तेन ल गरीब किसान बर राखे जतिस त बने होतिस। ये पइसा बाँटना जरूरी रहिस हे का? राजभासा ह साहित्यकार मन के सम्मान करिस तब कोनो राज म हजार-दू-हजार साहितकार ल साल-नरियर संग देय गीस अऊ कहूँ पइसा नइये कहिके नई देय गीस। नई देय के उदाहरन मेहा हावँव। तब आज ये पइसा काबर बाँटे गीस।
लोक कलाकार के अपमान होईस ये अलग। कार्यकरम बर छोटे मंच लोक कलाकार मनबर अऊ बड़े मंच बड़े कलाकार मन बर। लोक कलाकार ल छोटे समझे गीस। पानी बंटवाय के काम करे गीस। हमर छत्तिसगढिया साहित्यकार अऊ लोक कलाकार मन नाराज हावँय। बाजू म ‘जबर गोहार’ के धरना रहिस हे। भासा के लड़ई चलत हावय। लोक कलाकार, साहितकार जुरियाय रिहिन हें। कुछ मन देखे बर घलो इन्डोर स्टेडियम म गे रिहिन हें। जब देखे गीस के उँखर लोक कलाकार मन ल पानी पियाय बर कहे गे हावय। बहुत बेज्जती महसूस होइस। अतेक बड़ कार्यकरम म पानी पियाय बर नई रखे रिहिन का? येती तो पइसा बाँटत हावय, तामझाम म खरचा करत हावँय अऊ एक पानी बँटइया नी रख सकँय। आज जब सासन हर हमर लोक कलाकार के सम्मान नी करही त दूसर मन कइसे करही। हमर राज महकमा मन हमर संस्कृति करमी ल अपमानित करथे तभे तो छत्तिसगढ़ म दूसर राज के मनखे के भरमार हावय। ये मन कइसे सम्मान करहीं। येला अपनापन तो नी कहे जा सकय। अकाल के सुरता अब कोनो ल नई आवत हावय। महँगाई के मार झेलत राज एक बंद जगह म राज्योत्सव मना लीस। आम जनता जिहाँ पहुँच नी पइस। बीटीआई गराउंड रहितस त आम जनता घलो देख सकतिस।
एक नवंबर, सिक्छा बर छत्तिसगढ़ी माध्यम अऊ अलंकरण तिन विरोधाभास आयोजन होईस। एक नवंबर छत्तिसगढ़ स्थापना दिवस जिहाँ सासन अपन उन्नति देखावत हावय, ‘जबर गोहार’ म लोक कलाकार साहितकार अपन भासा बर लड़त हावँय। कामकाज के भासा तो होवय छत्तिसगढ़ी। प्राथमिक इसतर म माधियम तो बने छत्तिसगढ़ी। अऊ दूसर डाहर उही मेर छत्तिसगढि़या कलाकार के अपमान होवत हावय। छोटे मंच अऊ पानी पियावत हावँय। अँकाल के नाँव म रोके लाखों रुपिया अलंकरन म बाँटत हावँय। येला तो सी.एम. हाउस म कर देतिन तभो बने रहिस हे।
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सुधा वर्मा 
देशबंधु के मड़ई अंक ले

शनिवार, 9 जनवरी 2016

कविता के थरहा- बिसम्भर यादव ‘मरहा’

बिसम्भर यादव ‘मरहा’
बिना पढ़े लिखे अउ बिना लिखित संग्रह के अनगिनत रचना मुँहुअखरा होना बड़ अचरच के बात आए। एला माता सरसती के किरपा अउ कवि के लगन, त्याग-तपसिया अऊ साधना के परिनाम केहे जही मंच म खड़ा होके सरलग 8-10 घण्टा कविता पाठ करना कउनो हाँसी ठट्ठा नोहे फेर “मरहा’’ जी हा ए रिकार्ड बनइस तहाँ ले कई जघा “मरहा’’ नाइट के आयोजन घलो करे गिस। बच्छर के 365 दिन मा 300 दिन कवि सम्मेलन के मंच मा रहय। “मरहा’’ जी हा कतको धारमिक, अध्यात्मिक अउ समाजिक आयोजन मा अकेल्ला कवि पाठ
करय। तकरीबन 65-70 साल के उम्मर तक साइकिल के केरियल मा बेग ला दबा के पूरा छत्तीसगढ़ ला घुमे रिहिस। कभ्भू पइसा कउड़ी के बात नइ करय। तारिक वाले पाकिट डायरी ला जेब मा रखे रहय साल भर के एडवांस बुकिग चलय। सरल, सादगी जिनगी, नसा पानी ले कोसों दूर, चाय तक ला घलो नइ पियय। एकरे सेती दाँत, कान अऊ आँखी जियत भर ले सलामत रिहिस। मंच के परस्तुति अइसन रहय के कउनों सुनइया असकट नइ मरय अऊ टस ले मस नइ होवय।
मरहा के कविता मा हाँसी ठट्ठा के लहजा देखे ला मिलय तेखरे सेती सुनइया मन हाँसय अउ ताली बजावय (थपड़ी पिटय)। कविता के भाव के संग “मरहा’’ जी हा एकसन मिलावय कवि अऊ सोरोता के तार सरलग एके मा जुड़े रहय। कविता रचे के पाछु एकेच ठन सोच रिहिस। समाज सुधार के, फेर जर बुखार ला टोरे बर कुनेन खवाय के पहिली मंदरस चटाय बर परथे। वइसनेच बियंग के ठोसरा मारे के पहिली गुदगुदावय अउ हँसवावय। ओखर कविता नानकुन लइका ला लेके बुढ़वा-सियान तक बर रहय। कविता पाठ सुरू करे के पहिली गायितरी मंत्र अउ माता सरसती के बन्दना करय। लइका मन बर बाजा मनके गोठ-बात कविता मा तमूरा तार के अवाज गजब ढंग ले निकालय। जे ला सुन के सब हाँसी के मारे सब लोट-पोट हो जावय। घर-परिवार, सास-बहु, बेटी-बेटा, राजा-परजा, परोसिन-मितान के हुबहु दरसन मिलथे। चारा अऊ मछरी के गोठ बात जइसन रचना के माध्यम ले मनखे ला सुधरे अउ लोक-परलोक बनाय के सीख देवय। केहे जाथे सियान मन के चुँदी हा घाम म निहीं बल्कि तजुरबा अऊ अनुभव मा पाकथे, अपन सपूरन जिनगी के अनुभव ला कविता मा बाँटिस। येदे रचना मा ऐ बात के झलक देखे बर मिलथे- नाचा वाले ल अवघट मा तीन झन चोर मन छेंक लिस, उँखर मोटरा-चोटरा ला खोधिया के देखिस कुछु माल-मत्ता नइ मिलीस त खिसिया के बंदुक ला टेका के नाचे बर किहिस। जीव के डर म नाचा वाले मन नाचे ला लागिन फेर नौ झन नचइया अऊ तीन झन देखइया कहाँ ले मजा आही जोक्कड़ मनिज्जर ह बड़ हुसियार रिहिस ऐ बिपत्ति ले निपटे के उदिम सोचिस अउ साखी बनाके बोलिस-तबला बाजे धिन-धिन, मंजीरा बाजे किन-किन।
एकेक झन ल तिन-तिन, एकेक झन ल तिन-तिन ॥

नाचा वाले मन इसारा ला समझ के एकेक झन चोर ऊपर तीन-तीन झन झुमिन अऊ उँखर छति-गति ला करिन।
देसभक्ति कविता ल पढ़य त सुनइया मन के रुआँ ठाढ़ हो जाय। सैंकड़ों बलिदानी सहिद मन के लयबद्ध सरसपाट बोल ल सुनके साँस रूके असन लगे… खून खऊल जाय। देस के माटी बर जिये अऊ मरे के गोठ ल बहुँतेच असरदार ढंग ले करे फेर भरस्टाचार के खिलाफ नेता मन ला अनुसासित अऊ सिस्ट ढंग ले बेखौफ दहाड़े। काखरो डर तरास नइ घेपय (पंच से लेकर परधानमंतरी तक बइमान हे) अइसे कहय अउ चैलेंज करे। मेहा गलत बोलत होहूँ त मोला जेल भेजवाव। ‘मरहा’ ओखर उपनाम हरय जउन हा जादा प्रचलित होगे। केहे जथे जथा नाम तथा गुन, दुबर-पातर देंह हा “मरहा’’ के नाम मा सउँहत फभे, “मरहा’’ जी अपन कविता मा भरस्टाचारी परखत्ता मन ला साँड़-गोल्लर के संगिया देय अउ सदाचारी जीवन बितइया आम जन जेन हा लुट अउ सोसन के सिकार होथे ओखर प्रतिनिधित्व “मरहा’’ करे। जेखरे सेती हमर छत्तिसगड़ के महान संत कवि पवन दिवान हा टेमरी गाँव के एक कवि सम्मेलन के मंच म बिसम्भर यादव के कविता “मरहा’’ के आँसू ल सुन के ओखर टाइटिल “मरहा’’ रखदिस अऊ ए जन कवि हा “मरहा’’ के नाम ले जग जाहरित होगे। मोला “मरहा’’ जी के संग कवि सम्मेलन के डेढ़ सौ मंच मा सँघरे के मउका लगे रिहिस संचालन करत मंच म आमंतरित करँव त ओखर सम्मान मा बोलँव-
गोल्लर कस भुँकरत हे चर-चर के हरहा।




सही मायने मा समाज के पीरा ला गोहरइया जनहित बर जियइया हा बहुत बड़े माने जाथे सादा जीवन उच्च विचार ला आत्मसात करे रिहिस बरम्हलीन स्वामी सुजनानंद जी महराज विमल वैदिक सेवा आश्रम पैरी के सानिध्य पाके समाज सुधार के बीड़ा उठाय के संकल्प लेइस अँचल म अइसे कउनो बिद्वान साधू-संत महापुरुस नइ बाँचिस होही जेखर संगति नइ करिस होही। कवि के साथ-साथ जाने माने रंगकरमी घलो रिहिस चंदैनी-गोंदा अऊ कारी लोक नाट्य मा जेखर अभिनय देखे ला मिलथे। संतोसी सदा सुखी ओखर जीवन के मूलमंत्र रिहिस बहुत कम साधन मा जीवन गुजारे के प्रयास करय सादा धोती-कुरता के संग हाफ जाकिट जेमा सम्मान मा मिले मेडल मन ला गुथे रहय। जेहा ओखर बिसेस पहिचान रहय। जउन घर मा ठहरय उहाँ के बहू-बेटी संग गोठियाय-बतराय अऊ असीस देय बिना उहाँ ले नइ टरे। कवि भाई मन ले परिवारिक नत्ता जोड़य, दुख-सुख के चिंता करय। अवसान के एक महिना पहिली ओखर घर मा मुलाकात करे बर गे रेहेंव उठे-बइठे के गतर नइ रिहिस खटिया म सुते-सुते किहिस इच्छा मृत्यु होतिस त मय मर जातेंव। अब जिये के साद नइ हे फेर भीसमपितामह ल इच्छा मृत्यु रेहे के बाद घलो बान के सइया म सुते ला पड़ीस। मोर संतान नइ होय के ओला घात चिंता रिहिस मोर हाल-चाल पुछीस त बताय हँव कि नवा सगा अवइया हे… त तपाक ले पुछिस नोनी हरे ते बाबू..! मय केहेंव आने वाला हे। आसीरबाद देबे तभे सरग जाबे। 
तारिख 3 अगस्त 2011 सनिच्चर के रात 9 बजे मोर घर बेटा जन्मीस, उही अठोरिया सनिच्चर 10 अगस्त 2011 के रात 9 बजे 80 बरस के उमर मा परलोक सिधारिस। नाम्ही साहितकार मन घर म जाके आखरी भेंट करिन अउ दुख के बेरा मा उँखर परवार ल ढाँढस बँधइन। काठी म गाँव वाले अऊ सगा सोदर संग कविमन घलो संघरे रिहिन जिहाँ देखे बर मिलिस, दु-तीन बच्छर के जुन्ना आदमकद के बर रूख ला गमलासुद्धा उठाके मरघट्ठी मा लेगे रिहिस, जउन ला काँटा मा चमाचम रूँधा करके जगोइन। मर के घलो मनखे ला रूख लगाय के संदेस दिस। जियत ले घूम-घूम के उपदेस बाँटिन अऊ अपनो ऊपर घलो लागू करिस। ये हा समाज बर बहुँत बड़े सीख आय। निमगा ग्यान बँटइ के कउनो मोल नइ हे। वो गियान ल अपन आचरन म उतारना घलो जरूरी रहिथे। “मरहा’’ जी के जिनगी मा ये बात परगट रूप ले दिखथे। का भइस ओखर जिनगी के दिया ह सुन्ना म बुतागे। समाज अऊ सरकार डाहर ले जादा सोर-गोहार नइ करिस, फेर मोला पक्का बिसवाँस हे कि उँखर सिरजे कविता के एक-एक सब्द, एक-एक बोल ह समाज म अँजोरी बगराके जम्मो मइनखे ला बने रद्दा देखाही।
- केशव राम साहू
गुण्डरदेही, जिला-बालोद (छ.ग.)
मोबा. 9993291095

भारतीय गणना

आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!