छत्तिसगढ़ राज ल बने सोला बछर होगे हे तभो ले छत्तिसगढ़िया अऊ छत्तिसगढ़ भासा के कोनों बिकास नई होय सके हे। सबो राज म उहाँ के लइका मन बड़ मान-सम्मान ले अपन महतारी भासा ल गोठियाथे। अऊ तो अऊ हमरो राज म आके अपन भासा म गोठियाथे, फेर हमर राज म अइसे नई हे, हमरे राज के भाई-बहिनी मन अपन भासा म नई गोठियावय तेखरे सेती हमर महतारी भासा ह कहुँ गँवावत जात हे। छत्तिसगढ़ म छत्तिसगढ़ी भासा ल सबो कोती नई बोलय, कोनो-कोनो कोती दु-चार मनखे मन जेन अपन छत्तिसगढ़ी भासा म गरब करथे, तेन मन बोलेथे, गुनथे अऊ लिखथे घलोक। बस उही मन छत्तिसगढ़ी भासा ल जगाय के परियास करत हे। जउँन मन ठेठ छत्तिसगढ़िया हाबय तेन मन ये सब देख के अब्बड़ कलपत हे कि उँखर राज म उँखरे भासा ल गोठियाय बर संगी-संगवारी मन लजाथे, अऊ दुसर भासा ल बड़ गोठियाथे।
आघु के बाढ़त बेरा म अइसने रही त आघु के अवइया लइका मन ह छत्तिसगढ़ी भासा ल भुला जाही। येखर असतित्व के नास हो जाही, छत्तिसगढ़ के बिकास के साँथ उँखर भासा ल सबो जगह बिकसित करना होही। छत्तिसगढ़ी भासा के जनवइया मन ल येखर बर विचार करके अपन मेहनत ले एला आघु बढ़ाय बर अपन-अपन योगदान देना चाही। छत्तिसगढ़िया संगी-संगवारी मन ल अपन भासा ल गोठियाय बर उही बाहिर के अवइया मनखे मन ले सिखना चाहि, जउँन मन बाहिर राज ले आके अपन बोली-भासा ल घलोक नई भुलाय। अपने बोली-भासा म अपन संगी-संगवारी मन ले गोठियाथे, अऊ वोमन ल अपन महतारी भासा ले अब्बड़ मया रहिथे। जेन मनखे मन अपन महतारी भासा छत्तिसगढ़ी म पढ़े-लिखे हाबय तेखरो अतेक पढ़े के बाद कोनों बिकास नई हो सके हे, वहु मन भटकत हे, अऊ दूसर भासा बोलइया लइका मन दुरिहा-दुरिहा म जा के बसे हे नउकरी करथे, कहिके अऊ कोनों मनखे छत्तिसगढ़ी भासा नई सिख सकत हे, एखर कारन हावय के छत्तिसगढ़ भासा के कोनों बिकास अभी तक ले नई हो सके हे।
छत्तिसगढ़ी भासा ल आघु बढ़ाये बर इहाँ के सियान, साहितकार, अधिकारी, मंतरी अऊ आम मनखे ल अपन-अपन कोती ले पराथमिक सिच्छा म लागु करना पड़ही। जेकर से लइका मन एखर बारे म जान सके अपन भाखा ल सीख सकय अऊ अपन महतारी भासा ल आघु बढ़ाय सकय, फेर छत्तिसगढ़ी भासा ल राज-काज के भासा म घलोक मिलाय बर परही तब हमर भासा के पहिचान होही।
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अनिल कुमार पाली
तारबाहर, बिलासपुर (छ.ग.) मोबा. 7722906664
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