
आधुनिक काल में हिन्दी-उर्दू-हिन्दुस्तानी के माध्यम से छत्तीसगढ़ी जनभाषा में आए हुए शब्द पश्तो, तुर्की, फारसी, अरबी, उर्दू, पुर्तगाली, नेपाली और अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं के हैं। इन शब्दों का उच्चारण छत्तीसगढ़ी जनभाषा की ध्वनिमीय व्यवस्था के अनुरूप परिवर्तित हो गया है। इस तरह देखें तो छत्तीसगढ़ी पर विभिन्न देशों के भाषाओं का प्रभाव मिश्रित होता चला गया है-
तुर्की का प्रभाव
भारत में अनेक वर्षों तक तुर्कों का राज्य था। इसी अवधि में तुर्की के अनेक शब्द भारतीय आर्य
भाषाओं में प्रविष्ट होते हुए छत्तीसगढी जनभाषा में आ गए हैं जो इस प्रकार हैं-
उजबक, कलगी, कुली, कैंची, गलीचा, चाकू, दरोगा आदि।
फारसी का प्रभाव
छत्तीसगढी जनभाषा में हिन्दी-उर्दू-हिन्दुस्तानी के माध्यम से आए हुए फारसी के कतिपय शब्द
प्रयुक्त होते हैं जो निम्नलिखित हैं-
पाजामा-पाजामा
ले-कवा-लकवा
साफी-साफा
हलवा-हलवाई
हलवा-हलुवा
और
दरजी-रजी आदि
नेपाली का प्रभाव
छत्तीसगढ़ी जनभाषा में व्यवहार होनेवाली कुछ नेपाली शब्द इस प्रकार हैं-
अधिया, आरा, किरिया, गोदना, गौंटिया, गोंटी, जाँगर, डिंगरा, ढेंकी, फोकट, भकला, भंडारा, भूतहा और लुरकी आदि।
अरबी का प्रभाव
छत्तीसगढ़ी जनभाषा में व्यवहार होनेवाली कतिपय अरबी शब्द निम्नलिखित हैं-
अलबत्ता, औकात, कुर्सी, जम्मा-जम्मों, जहाज, बरकत, मोक्कदम-मुकद्दम और रकम।
पुर्तगाली का प्रभाव
छत्तीसगढ़ी जनभाषा में व्यवहार होनेवाली कतिपय पुर्तगाली शब्द निम्नलिखित हैं-
अनानास, अलमारी, मामला, गोदाम, गोभी, चहा-चाय, सीपा-पीपा, मिसतिरी-मिस्त्री आदि।
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डॉ. व्यास नारायण दुबे
हरिभूमि/चौपाल में 09-06-2016 को प्रकाशित
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