हमारे मौजूदा भ्रष्टाचार निरोधी व्यवस्था में अनेक खामियां हैं, जिनकी वजह से पुख्ता सबूत होने के बावजूद भ्रष्ट लोगों के खिलाफ न तो ईमानदारी से जांच होती है, न ही मुकदमा चलाया जाता है और शायद ही किसी को सज़ा मिल पाती है। हमारी पूरी भ्रष्टाचार निरोधी व्यवस्था असल में भ्रष्ट लोगों को बचाने का काम करती है। हमारी भ्रष्टाचार निरोधी इकाइयों में कई खामियां हैं जिनकी वजह से वह कोई भी ईमानदार जांच करने में असमर्थ हैं। नीचे हमारी भ्रष्टाचार निरोधी तंत्र की चार प्रमुख कमियां दी गई है। हमारी भ्रष्टाचार निरोधी व्यवस्था की कमियों की विस्तृत जानकारी के लिए परिशिष्ट-1 देखें :
क. स्वतंत्रता का अभाव
हमारी ज़्यादातर एजेंसियां जैसे- सीबीआई, राज्य सतर्कता विभाग, विभिन्न विभागों के आंतरिक सतर्कता विभाग, राज्य पुलिस की भ्रष्टाचार निरोधी शाखाएं इत्यादि स्वतंत्र नहीं है। अधिकतर मामलों में उन्हें अपनी जांच की रिपोर्ट उन्ही लोगों को सौंपनी होती है जो या तो आरोपी होते हैं या जिनके आरोपियों के प्रभाव में आने की संभावना होती है। उदाहरण के लिए-
- पंजाब के सतर्कता विभाग की जिम्मेदारी पंजाब के मुख्यमंत्री के पास है। मज़े की बात यह है कि वही सतर्कता विभाग मुख्यमंत्री तथा उनके परिवार के लोगों के विरूद्ध भ्रष्टाचार के मामलों की जांच कर रहा है तथा मुकदमा चला रहा है। क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि सतर्कता विभाग ईमानदारी से कोई जांच या मुकदमा चलाएगा?
- कृपया परिशिष्ट-2 में दी गई विस्तृत रिपोर्ट देखें कि कैसे भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण( एनएचएआई) के एक उच्च अधिकारी के घर से बेहिसाब नगद राशि मिलने के बाद भी कमल नाथ ने उस अधिकारी के विरूद्ध भ्रष्टाचार का मामला दर्ज करने की अनुमति नहीं दी। सीबीआई ने कोयला मंत्रालय के एक अधिकारी, के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की अनुमति के लिए कई बार अनुरोध किया। परंतु कोयला मंत्रालय ने अनुमति नहीं दी। वह अधिकारी बाद में सीएमडी( मुख्य प्रबंधक निदेशक) बन गया। रेलवे ने इसी तरह रेलवे भर्ती घोटाले से जुड़े उच्च अधिकारियों के ख़िलाफ़ मुकदमा चलाने की सीबीआई की मांग को लटकाए रखा।
हमारी कुछ एजेंसियां जैसे मुख्य सतर्कता आयोग या लोकायुक्त स्वतंत्र तो हैं, लेकिन उनके पास कोई शक्ति नहीं है। उन्हें केवल सलाह देने वाली संस्था बनाया गया है। वे सरकार को दो तरह की सलाह देती हैं- किसी अधिकारी के खिलाफ विभागीय दंड लगाने की या उसके विरूद्ध अदालत में मुकदमा चलाने की। यह देखने में आया है कि जब भी किसी मंत्री या उच्च अधिकारी के विरूद्ध ऐसी सलाह दी जाती है, तब शायद ही उस पर अमल होता है।
ग. कई तरह की एजेंसियां
सरकार ने जान बूझकर अनेक भ्रष्टाचार निरोधी एजेंसियों का गठन किया है, तथा उन्हें टुकड़ों में अधिकार प्रदान किये हैं। यह इसलिए किया गया है जिससे वे प्रभावी न हो पाएं। उदाहरण के लिये-
- केन्द्र सरकार के स्तर पर, भ्रष्टाचार के एक ही मामले में मुख्य सतर्कता आयोग को उच्च अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला देखना होता है तथा विभागीय सतर्कता को कनिष्ठ अधिकारियों का मामला देखना होता है। जैसे कि वरिष्ठ और कनिष्ठ अधिकारी भ्रष्टाचार में अलग-अलग लिप्त होते हैं!
- पुन: इसी मामलें में जहां ये दोनों एजेंसियां सतर्कता की दृष्टि से जांच, करती हैं वहीं सीबीआई इसी मामले की जांच आपराधिक दृष्टिकोण से करती है। सतर्कता तथा आपराधिक दृष्टिकोण लगभग समान होते हैं (दोनों एजेंसियां एक ही मामले की लगभग वही जांच पड़ताल अपने-अपने तरीके से करती हैं जो कि लगभग एक जैसी होती हैं।
- भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल के अनुसार मुख्य सतर्कता आयोग नौकरशाहों की भूमिका की जांच करेगा तथा लोकपाल राजनेताओं की भूमिका की जांच करेगा। जैसे कि राजनेता और नौकरशाह भ्रष्टाचार में अलग-अलग सम्मिलित हों ! सबसे पहले तो, इस तरह का विभाजन भ्रम पैदा करता है। दूसरा, ऐसी जांच-पड़ताल कई सालों तक चलती रहती है। उदाहरण के लिये, कॉमनवेल्थ घोटाले के स्ट्रीट लाइट, मामलें में पहले सीवीसी ने जांच की, उसके बाद सीबीआई ने जांच की तथा उसके बाद इसी मामलें में शुंगलू समिति ने भी पूछताछ की। तीसरा, यदि दो एजेंसियां अलग-अलग नतीज़ों पर पहुंचती हैं तो इससे भ्रष्ट लोगों के ख़िलाफ मामला कमज़ोर पड़ता है। ऐसी भ्रामक व्यवस्था का फायदा अंतत: भ्रष्ट लोगों को मिलता है जिनको सज़ा कभी नहीं मिलती।
घ. पारदर्शिता एवं आंतरिक जवाबदेही की कमी
इसके साथ ही, इन भ्रष्टाचार निरोधी इकाइयों में आंतरिक पारदर्शिता तथा जवाबदेही की कमी है। वर्तमान में, इन भ्रष्टाचार निरोधी इकाइयों में यदि इनके खुद के कर्मचारी भ्रष्ट हो जाते हैं तो इन्हें रोकने के लिए कोई अलग से प्रभावी व्यवस्था नहीं है।
यही कारण है कि इतनी एजेंसियों के होते हुए भी भ्रष्ट लोग शायद ही कभी जेल जाते हैं। भ्रष्टाचार बड़े फ़ायदे तथा बिना खतरे वाला व्यवसाय बन गया है। भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ किसी भी प्रकार का कोई भय नहीं रह गया है।
ड़. हमारी भ्रष्टाचार निरोधी कानून में कई बड़ी ख़ामियां है जो भ्रष्टाचारियों का बचाव
करती है। उदाहरण के लिए :
आज की व्यवस्था में, यदि कोई भ्रष्ट व्यक्ति जेल में जाता है तो भी ऐसा कोई प्रावधान कानून में नहीं है जिसके द्वारा उस व्यक्ति की काली कमाई या उसके द्वारा सरकार को पहुंचाए गये नुकसान की वसूली की जा सके उसकी संपत्ति जब्त की जा सके।
किसी मामले में जांच शुरू करने से पहले अथवा भ्रष्टाचार का मामला कोर्ट में दायर करने से पहले उस विभाग के उच्च अधिकारी या मंत्री से अनुमति लेनी पड़ती है। कई मामलों में वे खुद प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भ्रष्टाचार में शामिल होते हैं। इस प्रकार लगता है कि भ्रष्ट लोगों के बचाव के लिए बहुत कुछ है। इनके अलावा भी भ्रष्टाचार निरोधी कानून में अनेक खामियां हैं। जन लोकपाल अधिनियम के द्वारा भ्रष्टाचार निरोधी एजेंसियों और कानून की खामियों को ठीक करने की कोशिश की गई है।
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