रविवार, 21 अगस्त 2011

जन-नायक

जननायक बनकर उभरे अन्ना हजारे दरअसल आम आदमी है और आम आदमी ही बने रहना चाहते हैं। इसलिए उनके हिमायत में आम आदमी भी सड़कों पर उतर आया है शायद । आंदोलन जहाँ भी पहुँचे, पर अन्ना इतिहास में अपनी कुर्सी पक्की कर चुके हैं। किन गुणों ने उन्हें जन नायक बनाया...

दो छवियां देशवासियों को काफी दिनों तक नहीं भूलेंगी।15 अगस्त की शाम को दिल्ली में महात्मा गांधी के समाधि स्थल राजघाट पर ध्यान की मुद्रा में चुपचाप अकेले बैठे अन्ना हजारे। पृष्ठभूमि में हरी घास का मैदान। हरेक मिनट बीतने के साथ चारों तरफ आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ती लोगों की भीड़। 

जिसे जब पता चला वह जहां कहीं था राजघाट की ओर दौड़ पड़ा। अगली सुबह अन्ना अपनी योजना के मुताबिक आमरण अनशन पर बैठने वाले थे। उन्हें अनशन के लिए जगह और अनुमति देने से इनकार किया जा चुका था।

ऐसे में बिना किसी पूर्व घोषणा के वह चुपचाप बापू की समाधि पर आकर बैठ गए। दो-ढाई घंटे बैठे रहे। बीच-बीच में चश्मा उतारकर आंख पोंछते अन्ना। चारों तरफ हलचल बढ़ रही थी। लोगों का हुजूम उमड़ रहा था। पर सबसे निरपेक्ष अन्ना ध्यान में डूबे वहां बैठे थे। मानो आने वाली चुनौती का मुकाबला करने के लिए शक्ति जुटा रहे हों।

दूसरी अविस्मरणीय छवि है अगले दिन देश के छोटे-बड़े कई शहरों में सड़कों पर उमड़े जनसैलाब की। अन्ना को सुबह निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने से पहले ही हिरासत में लिया जा चुका था। 16 अगस्त की सुबह जिसने भी टेलीविजन खोला उसे अन्ना की गिरफ्तारी की खबर मिलने के साथ ही दिल्ली की सड़कों पर लोगों के एकत्र होने की तस्वीरें दिखने लगीं। जहां-जहां अन्ना को ले जाए जाने की खबर मिलती छात्रों-युवाओं की टोलियां उधर ही दौड़ जातीं। 

दोपहर तक कई स्थलों पर जोश से भरे लोगों का हुजूम इकट्ठा हो गया। दूसरे शहरों से भी ऐसे ही प्रदर्शनों की खबरें और तस्वीरें आने लगीं। हाथ में तिरंगे लिए, सिर पर अन्ना टोपीलगाए, प्लेकार्ड लहराते लोगों की तस्वीरें। शांत और उत्सुक लोगों की तस्वीरें। जरूरी और अहम काम का बीड़ा उठाने के अहसास से लबालब चेहरों की तस्वीरें। अपने भीतर गुस्से को जज्ब करते लोगों की तस्वीरें। अगले कुछ दिन टेलीविजन स्क्रीन पर ऐसी तस्वीरें आम हो गईं। उनमें विस्मय का बोध कम होता गया, लेकिन गंभीरता और जनसैलाब का आकार बढ़ता गया। 

इन दो छवियों को जोड़कर देखने पर इनमें राष्ट्रीय फलक पर एक नए जनांदोलन और जननेता का उभार देखा जा सकता है। इनमें देश की तरुणाई की अंगड़ाई है, तो एक बुजुर्ग नेता की नई विराट जनछवि भी है। 

आखिर क्या वजह है कि एक 74 बरस के बुजुर्ग ने युवाओं और लोगों की नब्ज को इस तरह छू लिया है कि जैसे पिछले दो-तीन दशकों में कोई भी दूसरा नेता नहीं कर सका? क्या वजह है कि अन्ना हजारे ने लोगों में इतने गहरे विश्वास की भावना भर दी कि उनके लिए वे सड़कों पर उतर आए? 

हाल में कोई भी दूसरा नेता इस तरह जनाकांक्षाओं का केंद्र बनकर नहीं उभर सका, जिस तरह अन्ना उभर सके? आइए अन्ना के ऐसे 10 गुणों को देखते हैं जिन्होंने उन्हें इस उम्र में देशवासियों, खासकर युवाओं के दिलों का नायक बना दिया। 

1. सादगी
अन्ना के व्यक्तित्व की जिस खूबी पर सबसे पहले ध्यान जाता है वह है उनकी सादगी। यह सादगी कदकाठी से लेकर पहनावे तक में दिखाई देती है। सफेद धोती-कुरते और टोपी से सुशोभित सामान्य कदकाठी के इस बुजुर्गवार से जुड़ने में जींसधारी युवा पीढ़ी को जरा दिक्कत नहीं हुई। 


2. सच्चाई 
सादगी पर उतना ध्यान नहीं जाता अगर उनके व्यक्तित्व में सच्चई नहीं होती। यह उनके पूरे व्यक्तित्व से झलकती है। जब उनके ऊपर यह आरोप लगाया जाता है कि उन्होंने संस्था के धन में से दो लाख रुपए अपने जन्मदिन पर खर्च कर लिये, तो कोई विश्वास नहीं करता। 

3. पारदर्शिता
अन्ना के व्यक्तित्व में एक निश्छल पारदर्शिता है। उनके आर-पार देखा जा सकता है। उन्हें देखकर यह विश्वास होता है कि उनके पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है। कैमरे की आंख से देखने के इस दौर में व्यक्तित्व की इस पारदर्शिता को पहचानना आसान हो गया है। 

4. विनम्रता
विनम्रता अन्ना के हर शब्द और कदम से झलकती है। विनम्रता निश्छल मुस्कराहट से प्रकट होती है। उनके चेहरे पर दर्प की एक लकीर भी दिखाई नहीं देती। महाराष्ट्र में कुछ मंत्रियों के इस्तीफे का श्रेय उन्हें हासिल है। लेकिन इसका अहंकार उनमें दिखाई नहीं देता। जब वह सिर पर हाथ रखकर कहते हैं…, ‘तो मैं घर पर पानी भरूंगा’, तो यही विनम्रता ध्यान खींचती है।

5. मितभाषिता
बड़बोलापन हमारी राजनीति ही नहीं, अधिकांश अनुशासनों की पहचान बन गया है। इसके विपरीत मितभाषिता का दुर्लभ गुण अन्ना में है। उन्हें लंबी तकरीर करते मुश्किल से ही देखा गया है। कम शब्दों में अपनी बात कहकर चुप हो जाते हैं। वाचालता या अतिकथन आत्मविश्वास की कमी का परिचायक माना जाता है। अन्ना की मितभाषिता उनके आत्मविश्वास से आती है।

6. दृढ़ता
दृढ़ता के बगैर विनम्रता का ज्यादा अर्थ नहीं है। इसके बगैर विनम्रता कमजोरी बन जाती है। इसीलिए पानी भरनेकी बात में जहां विनम्रता है, वहीं उनकी दृढ़ता दिखाई देती है जब वह कहते हैं कि मैं सौ फीसदी का दावा तो नहीं करता, लेकिन जन लोकपाल बिल 60 से 65 फीसदी भ्रष्टाचार जरूर रोकेगा। 

7. सोद्देश्यता
कार्यशैली में सोद्देश्यता के बगैर लोगों के दिलों को छू पाना संभव नहीं है। यह सोद्देश्यता ही भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना को विश्वसनीय बनाती है और लोगों के मन में उम्मीद जगाती है। लोगों को लगता है कि यह एक व्यक्ति है जिसका उद्देश्य भ्रष्टाचार से निजात दिलाना है।

8. जोखिम
जोखिम का सटीक आकलन और उसे उठाने की हिम्मत नेतृत्व के लिए जरूरी गुण है। अप्रैल में जब अन्ना जंतर-मंतर पर अनशन पर बैठ रहे थे, तब खुद उन्हें भी पता नहीं था कि लोग साथ आएंगे या नहीं। पर उन्होंने जोखिम उठाया। 16 अगस्त को भी वह जोखिम उठा रहे थे। वह नाकाम भी हो सकते थे, लेकिन नाकामी के डर से वह अपने इरादे से पीछे नहीं हटे। 

9. अभिव्यक्ति
मराठी अन्ना की मातृभाषा है। हिंदी वह मराठी जुबान और मुहावरे में बोलते हैं। और कम बोलते हैं। फिर भी ऐसा क्या है कि देश के नागरिकों और युवाओं से वह इतने जबरदस्त तरीके से कनेक्ट कर सके? उनमें आम आदमी की अभिव्यक्ति का पुट है। जब पूछा जाता है कि क्या उन्हें उम्मीद है कि प्रधानमंत्री चिट्ठी का जवाब देंगे, तो वह कहते हैं उम्मीद तो रखनी है 

10. दूरदर्शिता
दूरदर्शिता अच्छे नेतृत्व का अनिवार्य गुण है। अन्ना के व्यक्तित्व में एक हद तक इसकी झलक मिलती है। अन्ना के मन में यह विश्वास होगा कि भ्रष्टाचार के सवाल पर लोग साथ आएंगे। यह विश्वास दूरदर्शिता के बगैर नहीं आ सकता था। अन्ना के आंदोलन को अभी लंबी यात्रा तय करनी होगी। इसमें उनकी दूरदर्शिता की कड़ी परीक्षा होगी।

साभार दैनिक भास्कर से


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आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!