गुरुवार, 25 अगस्त 2011

इंद्र के पीरा- 8


(इंद्रदेव अउ दुत दुनों झन रेंगत हे रद्दाच मा बिसनु अउ नारद मिलथें।)
इंद्र- (बिसनु से) पाँव परत हौं भगवान..!
बिसनु- खुसी रानेताजी..! का हाल चाल हे तोर चुनाव के?
इंद्र- बिसरे दुख ला अउ आगू मा झन लावौभगवान..!
नारद- तोला का दुख परगे इंद्रजी..! नरायन..! नरायन..! चुनाव मा तो तहीं जीते होबे न?
इंद्र- मिटावत घाव ला अउ झन हुदर महराज..! तोर आदत हा बहुतेच खराप हे... काखरो बनत नइ देख सकस... तोला तो देखेच ला नइ भावत हे।
नारद- अइसे का कर परेंव इंद्रदेव जी..?
इंद्र- अउ का कर परेंव कहिथस महराज..! ए पूछ ते का नइ करे हस। जीते जियत मोला नरक मा ढकेले हस। अइसे होथे मिरित्युलोक मे..... ए होथे..... वो होथे..... अइसे फेसलेटी हे ..... वइसे फेसलेटी हे..!
नारद- त मे तो सिरतोन केहे हों भइ..!
इंद्र- सिरतोन केहे…का सिरतोन केहे हस..?
नारद- अरे भइ..! ए बता... उहाँ….अच्छा सुर-संगीत सुने बर मिलीस के नीहीं?
इंद्र- मिलीस हे।
नारद- अच्छा कुवालिटी वाला दारू मिलीस के नहीं?
इंद्र- मिलीस हे।
नारद- अउबने स्मारट-स्मारट सुन्दरी मिलीस के नीहीं?
इंद्र- वहू मन मिलीस हे।
नारद- तब का लबारी केहे हों मेहा...?
इंद्र- अरे यहू बात ला काबर नइ बताएके उहाँ बइमान, लफरहा,  दगाबाज, भरस्ट, चार सौ बीस मनखे मन घलो रहिथें?
नारद- जम्मो ला बतातेवँ…. देवराज..! ते मोला बताय बर देतेस तब ना। ते तो बस बने-बने ला बताएँवताँह ले चुनाव लड़े बर रुंगररुंगा गेस।
इंद्र- तोला तो बताना चाही।
बिसनु- इंद्रदेव जी..! अब लकीर पीटे ले का फायदा हे? सबले पहिली तो गलती तुमन करे हौ। तुँहला देंवता मन के राजा बनाय गेहेजम्मो सुख-सुविधा हे। तेखर उप्पर ले कोन जनी अउ का पाय के साध रिहिसे के चुनाव लड़े बर सोंच डरेव। देवराज जी..! जेन हा.. अपन बरतमान ले संतुस्ट नइ राहय तिंखर दसा तुँहरे मन कस होथे। कोनों बात ला भीतरी ले जाने के पहिली हुरहा कोनों फइसला कर लेना। लालच मा अँधरा हो जाना... अइसन बुता हा आगू के दुखअउ पछतावा के छोड़कुछु नइ देय। आगू बढ़े के साध सब मा होना चाही... फेर अइसनो का आगू बढ़ई... जेमा पहिली के जतिक पाए हे... तउनों हा गवाँ जाय।
इंद्र- भइगे भगवान..! मोला अपन गलती जनागे... छिमा चाहथों परभू..! फेर मोर एक ठन बिनती हे..!
बिसनु- बोलव इंद्रदेव?
इंद्र- अब परले कर देव भगवान..!
बिसनु- अभी काँहा परले होही देवराज..?
इंद्र- कब होही..?
बिसनु- जब पाप के अती हो जहीमनखे हा मनखे ला लीले बर धर लीहीं।
इंद्र- एखर ले अउ का अती देखत हौ भगवान..! इहाँ धरमी मन के खसलत जात हेंपापी मन ऊँच पीढ़ा पात हें। चुप हे तेन खिरत हेंलफरहा मन बाढ़त हें। इमानदार भूख मरत हेबइमान गुलछर्रा उड़ात हें। भरोसिल मन डंडा खात हेंभरोसा टोरइया मन इमान पात हें। सिधवा मन खूँटा मा बंधाय हेंबदमास मन छेल्ला ढिलाय हें। सिस्ट मन बर सजा हेभरस्ट मन ला मजा हें। कमइया मन दंदरत हेंकामचोर मन फुदरत हें। ए अनर्थ काबर होत हे... मोला ए दसा देखे नइ जात हे भगवान..! सिरतोन माइहाँ मनखे मन मनखे ला लीले बर धर लेहेंअब अउ का देखत हो भगवान..! जतेक जल्दी होय परले कर देवतुहँर पाँव परत हों भगवान..!
बिसनु- इंद्रदेव जी..! अपन भाग ले जादा अउ.. समे ले पहिली कोनों ला कभू कुछु मिले नीहीं। बसतुमन बेरा के अगोरा करौ देवराज..!
इंद्र- कोन जनी ओ बेरा कब आही... मोर अंतस के पीरा कब सिराही
(एकरे संग परदा के पाछु ले एक ठन गीत चलथे। बिसनु अउ नारद के पाछु इंद्रदेव मुड़ी गड़ियाय परदा के पाछु चल देथें।
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लिलार सिंह सिन्हा
संचालक... श्रीकृष्ण मानस मंडली चैनगंज
मोबा. 9981697531

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