1. यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इस काम के लिए सही लोगों का चयन हो। इसके लिए जन लोकपाल / लोकायुक्त के अध्यक्ष व सदस्यों की चयन प्रकिया को पारदर्शी एवं व्यापक आधार वाला बनाया गया है, जिसमें लोगों की पूरी भागीदारी है।
- जन लोकपाल के दस सदस्यों और अध्यक्ष के चयन के लिए एक चयन समिति बनाई जाएगी। इस समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता, दो सबसे कम उम्र के सुप्रीम कोर्ट के जज, दो सबसे कम उम्र के हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) एवं, मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) होंगे। चयन समिति योग्य लोगों का चयन उस सूची से करेगी, जो उसे ‘सर्च कमेटी’ द्वारा मुहैया कराई जाएगी।
- ‘‘सर्च कमेटी‘‘ में दस सदस्य होंगे, जिसका गठन इस तरह होगा:- सबसे पहले पूर्व/रिटायर्ड सीईसी और पूर्व सीएजी में से पांच सदस्य चुने जाएंगे। इनमें वो पूर्व सीईसी और पूर्व सीएजी शामिल नहीं होंगे, जो दाग़ी हों या किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ हुए हों या अब भी किसी सरकारी सेवा में कार्यरत हों। ये पांच सदस्य अब बाक़ी पांच सदस्यों का चयन देश के सम्मानित लोगों में से करेंगे, और इस तरह दस लोगों की सर्च कमेटी बनेगी।
- सर्च कमेटी देश के विभिन्न सम्मानित लोगों, जैसे संपादकों कुलपतियों, या जिनको वो ठीक समझें- उनसे सुझाव मांगेगी। इन लोगों के सुझाये गये नाम वेबसाइट पर डाले जाएंगे, जिन पर जनता की राय ली जाएगी। इसके बाद सर्च कमेटी की मीटिंग होगी जिसमें आम राय से रिक्त पदों से तिगुनी संख्या में उम्मीदवारों को चुना जाएगा। यह सूची चयन समिति को भेजी जाएगी, जो सदस्यों का चयन करेगी।
- सर्च कमेटी और चयन समिति की सभी बैठकों की वीडियो रिकॉर्डिंग होगी, जिसे सार्वजनिक किया जाएगा।
- इसके बाद जन लोकपाल और जन लोकायुक्त अपने कार्यालय के अधिकारियों का चयन करेंगे और उन्हें नियुक्त करेंगे।
2.यह सुनिश्चित किया जाएगा कि ये लोग ठीक से काम करें।
- जन लोकपाल या जन लोकायुक्त को हर शिकायत पर कार्रवाई करनी होगी।
- सुनवाई किए बिना किसी भी शिकायत को खारिज नहीं किया जाएगा। यदि किसी भी मामले को बंद किया जाता है तो ऐसा करने के बाद उससे जुड़े तमाम दस्तावेज़ों को सार्वजनिक किया जाएगा।
- जन लोकपाल और जन लोकायुक्त का कामकाज पूरी तरह पारदर्शी होगा। जिन दस्तावेज़ों से राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावित होती हो या जिनसे भ्रष्टाचार के ख़िलाफ आवाज उठाने वालों को खतरा पहुंचता हो, उन दस्तावेज़ों को छोड़कर सभी रिकॉर्ड्स या दस्तावेज़ सार्वजनिक किए जाएंगे। जिन दस्तावेज़ों से जांच की प्रक्रिया में बाधा पहुंचती है उन्हें, जांच के दौरान रोका जा सकता है लेकिन, जांच के बाद उन्हें भी सार्वजनिक कर दिया जाएगा।
- कितने मामले आये, कितने सुलझाए गए, कितने बंद कर दिए गए, क्यों बंद कर दिए गए, कितने लंबित हैं आदि का पूरा लेखा-जोखा हर महीने वेबसाइट पर प्रकाशित किया जायेगा।
3. यह सुनिश्चित किया जाएगा कि जन लोकपाल या जन लोकायुक्त किसी से प्रभावित न हों। जन लोकपाल या जन लोकायुक्त के अध्यक्ष या सदस्यों का कार्यकाल खत्म होने के बाद वो किसी भी सरकारी पद को ग्रहण नही कर सकेंगे और न ही कोई चुनाव लड़ सकेंगे।
4. यह सुनिश्चित किया जाएगा कि अगर वे ठीक से काम नहीं करेंगे तो हटा दिए जाएंगे।
(I) जन लोकपाल या जन लोकायुक्त के भ्रष्ट कर्मचारियों को हटाया जाना
कर्मचारियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत एक स्वतंत्र मंच पर की जा सकेगी जो प्रत्येक आयुक्त या प्रत्येक राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर (मंडलीय स्तर कमिश्नरेट स्तर पर) पर गठित होगा। इन शिकायतों पर एक महीने के अंदर जांच करनी होगी। यदि आरोप साबित होते हैं तो भ्रष्ट कर्मचारी को अगले एक महीने के अंदर नौकरी से निकाल दिया जाएगा और उसके खिलाफ भारतीय दण्ड संहिता एवं भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत फौजदारी का मुकदमा दायर किया जायेगा।
(II) जन लोकपाल या जन लोकायुक्त के अध्यक्ष या सदस्यों का हटाया जाना
जन लोकपाल या जन लोकायुक्त के अध्यक्ष व सदस्यों के ख़िलाफ कोई भी आदमी उच्चतम न्यायालय या उस राज्य के उच्च न्यायालय में शिकायत कर सकता है। न्यायालय की एक बेंच के सुनवाई के बाद विशेष जांच टीम के गठन का आदेश दे जा सकते हैं। इस टीम को तीन महीने में जांच पूरी करनी होगी। जांच के आधार पर न्यायालय जन लोकपाल या जन लोकायुक्त के अध्यक्ष या सदस्यों को हटाने का आदेश दे सकती है। जन लोकपाल का अधिकार क्षेत्र
क. सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश
(I) सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को हटाने की कार्यवाही वर्तमान व्यवस्था- किसी न्यायाधीश को गलत आचरण के मामले में संविधानिक लिखित प्रक्रिया के अनुसार महाभियोग लगा कर हटाया जा सकता है। जन लोकपाल कानून द्वारा प्रस्तावित व्यवस्था- जन लोकपाल विधेयक में इस व्यवस्था को बदलने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
(II) सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के विरु) भ्रष्टाचार के मामलों की जांच वर्तमान व्यवस्था - आज, यदि किसी सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप हो तो भारत के मुख्य न्यायाधीश की अनुमति के बिना न तो उसके खिलाफ (एफ. आई.आर.) दर्ज कराई जा सकती है और न ही जांच शुंरू की जा सकती है। ऐसा देखने में आया है कि किसी न्यायाधीश के खिलाफ भ्रष्टाचार के पर्याप्त सबूतों के पेश किये जाने के बावजूद मुख्य न्यायाधीश (एफ. आई. आर.) दर्ज करने का आदेश देने से हिचकिचाते हैं।
ऐसे भी मुख्य न्यायाधीश जो अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं, उन्होंने तक (एफ. आई. आर.) दर्ज कराने की अनुमति नहीं दी। जैसे, श्री पी. चिदंबरन ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सेन गुप्ता के खिलाफ (एफ. आईआर.) दर्ज कराने की अनुमति मांगी थी। यह अनुमति उस समय भारत के मुख्य न्यायाधीश वैंकटचलैया से मांगी गई थी जो अपनी सत्यनिष्ठा के लिए जाने जाते हैं, फिर भी न्यायाधीश वैंकटचलैया ने अनुमति नहीं दी। न्यायाधीश सेन गुप्ता के खिलाफ सबूतों के मजबूत होने का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके रिटायरमेंट या सेवानिवृत्त होते ही छापा पड़ा और उन्हें हिरासत में ले लिया गया क्योंकि रिटायरमेंट या सेवानिवृत्ति के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश से अनुमति की ज़रूरत नहीं होती।
ऐसे ढेरों मामलें है जहां प्राथमिकी (एफ. आई. आर.) दर्ज कराने की अनुमति ठुकरा दी गई। ऐसे कुछ मामले नीचे दिये गये है-
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस भल्ला के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज कराने की मांग सन् 2006 से लंबित है। यह मांग ‘‘कैम्पैन ऑन ज्युडिशियल अकाउंटबिलिटी’’ द्वारा उठाई गई थी जिसके प्रतिनिधि शांति भूषण, प्रशांत भूषण, राम जेठमलानी, न्यायमूर्ति राजेन्द्र सच्चर, इन्दिरा जयसिंह, अरविंद निगम आदि हैं। जस्टिस एफ. आई. रिबैलो के खिलाफ एफ. आई. आर. दर्ज कराने की इसी समूह की मांग भी सितम्बर 2010 से ज्यों की त्यों पड़ी हुई है। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज कराने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश से अनुमति मांगने वाली मौजूदा व्यवस्था उच्च न्यायिक प्रणाली में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाली तथा भ्रष्टाचारियों को सुरक्षा प्रदान करने वाली मालूम होती है।
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