मंगलवार, 23 जुलाई 2013

आँसू

ग़म के आँसू और खुशी के आँसू हर व्यक्ति के जीवन में आता है। ग़म को भुलाना और खुशियों में मुस्कुराना प्रकृति की अद्भूत कृति है। इससे आज तक कोई नहीं बच पाया है, तो भला किशन कैसे बच सकता था। उनके जीवन में भी काफी उतार-चढ़ाव आये। उसके विवाह हुए दो वर्ष हुए थे उनकी पत्नी श्यामा सगर्भा हुई, शिशु वात्सल्य नर्सिंग होम में डिलेव्हरी के लिये खुशी-खुशी श्यामा को किशन ले गया।

कुछ घंटों प्रतिक्षा के बाद श्याम ने बिटिया जन्म दी। किशन झूम उठा, मेरे आँगन में किलकारी गूँजेगी, अनगिनत सपने संजोने लगा, एकाएक नर्स किशन को कहती है- भाई साहब..! अपनी देवी की हालत का भी ख्याल करें, इतने में दूसरी परिचारिका आकर कहती है- भाई साहब..! बेटी तो पा गये आप, अपनी पत्नी खो गये। किशन के होश उड़ गये, चक्कर खाकर फर्श पर गिर पड़ा, मरीजों के देखभाल में आये हुये सज्जनों ने किशन के मुसीबत के सहभागी बनकर धीरज बँधाया। पूर्व में ही किशन लाल ने अपनी बिटिया का नाम श्वेता सोच लिया था।

जैसे ही श्यामपुर गाँव में अपनी पत्नी की निर्जीव काया और बच्ची को लेकर आया गाँव में भूचाल आ गया, बहुत बड़ी भीड़ उसके घर के चारों ओर दिखाई देने लगे, कुछ लोगों ने माथे पर हाथ धर दिये तो कुछ लोग किशन लाल को धीरज बँधाने लगे और बोले बच्ची का ख्याल कीजिये, दूर के रिश्तेदार भी आ गये। दाह-संस्कार किया गया, तत्पश्चात लोग अपने-अपने घर वापिस लौट गये।

घर का कोना कोना साँय-साँय लगता था। श्यामा की तश्‍वीर को देखकर किशन लाल के आँख से आँसू झर-झर झरने लगे। अपनी बिटिया श्वेता को बाँहो में रखकर सोचा यह भी क्या जीवन है कि मेरी लाडली का अब क्या होगा, एक ओर स्कूल की सेवा, दूसरी ओर श्वेता का लालन- पालन, कुछ बड़े सुलझे लोगों ने कहा- किशन लाल जी..! आपको गृहस्थी बसाना ही पड़ेगा, आज के जमाने में सहयोग की भावना ही कहाँ रह गई है कि ‘स्वारथ लाग करें सब प्रीति’ वाली बात दिखाई देने लगा है। किशन लाल के पास सबकी बातों को सुनने के आलावा रह क्या गया था, मन ही मन सोचता भगवान की भी अजीब दास्तान है। समय बीतते गया, श्वेता स्कूल जाने के लायक हो गयी, पड़ोसन सुखिया सेवा सुश्रुवा करके अपने घर की राह नाप लेती थी।

देखते ही देखते श्वेता कुछ होश संभाली और पापा सबकी मम्मी है और मेरी मम्मी कहाँ है, इतना सुनते ही किशन सजल हो जाता। बिटिया तुम्हारी मम्मी भगवान के घर चली गई है। कब लौटेगी? किशन ने कहा कुछ दिनों बाद लौट आयेगी। श्वेता पहली कक्षा में पढ़ने लगी। तब मेम ‘माँ’ पर एक कहानी कहने लगी, श्वेता बहुत ध्यान से कहानी सुनकर अपनी भींगी आँसूओं को हाथ से पोंछने लगी, तब मेम दास ने कहा- श्वेता..! आज तुम्हारी आँखें गिली है क्या बात है बेटा बोलो तो सही? मेम मेरी मम्मी भगवान के घर से अब तक नहीं लौटी है। मेम को समझते देर नहीं लगी, श्वेता को लेकर मेडम दास आयी और बोली- किशन लाल जी..! अब श्वेता समझदार हो रही है भुलावा देना ठीक नहीं, वास्तविकता को कब तक छिपाते रहेंगे? किशन लाल जी के पास मौन होने के सिवा कुछ शेष नहीं रह गया था। आँखें नम, हाथ जुड़े स्थिति देखकर श्वेता स्तब्ध रह गई, श्वेता बोली- पापा..! मम्मी नहीं लौटेगी? किशन ने कहा। बेटा..! नहीं लौटेगी। एक बार श्वेता चित्कार उठी और सिर पकड़कर बैठ गई और अपनी मम्मी की तस्वीर को एक टक निहारती खड़ी रह गई। किशन लाल श्वेता को पुचकारते दुलारते कहा- बेटी..! विधि के विधान के आगे नतमस्तक होना पड़ता है, तुम खूब पढ़ो और माँ का नाम रोशन करो, तू तो मेरी रोशनी है, यह जीवन अब तेरे लिये समर्पित है।

कुछ बरस बाद जब श्वेता यौवन की दहलीज पर कदम रखी, तब किशन लाल के चेहरे में चिंता की रेखायें उभर आयीं और इससे उबर पाना मुश्किल जान पड़ा, तब अपने ही कलेजे के टुकड़े से क्या छिपाना, हिम्मत जुटाते किशन लाल ने कहा बेटी बिटिया परायी धन होती है और फर्ज़ पूरा करना मेरा धर्म है। श्वेता की समझ में बात आ गई और बोली- पापा..! चाहे जो भी हो, अकेले आपको नहीं छोड़ सकती। मझधार में हो तो उसका निदान आवश्यक है कहकर श्वेता ने कहा मुझे बिदा करने के पहले आपके लिये घर बसाना उचित है, नहीं तो बेअधर हो जायेंगे, अकेलापन शरीर को दुर्बल और मन को कमजोर बना देता है।

गाँव में ही सजातीय परित्यक्ता सुशीला कन्हैया लाल की सज्ञान बिटिया किसी की सहारा के लिये बाट जोहती गुजर-बसर कर रही है। मैं प्रयास करती हूँ और सुशीला के विचारों से अवगत होकर आपको पापा मैं खबर करती हूँ। किसी का घर-संसार बसाना पुण्य है। किसी परित्यक्ता को अपना कर उसके जीवन की बगिया में जल सिंचन करने से बढ़कर और क्या पूजा हो सकती है।

किशन लाल अपनी बिटिया की सयानी बात सुनकर हतप्रभ हो गया और सोचने लगा श्वेता इतनी समझदार हो गई है लेकिन ‘सौतेली’ शब्द उनके जेहन को बेचैन कर दिया, यह कईयों के जीवन को बरबाद करने वाली बात है। श्वेता ने कहा- पापा..! पुरानी घिसी-पिटी बातों को लेकर चलने से दकियानुसी विचार मन में आते हैं, नये विचार, सकारात्मक सोच से जीवन दीर्घायु होता है। पापा मेरी बात मान जाइये, सुशीला मान गई है उनके परिवार को स्वीकार कर, ले आया। सुशीला श्वेता को खूब प्यार करने लगी, ऐसा लगता कि भगवान श्वेता की माँ को लौटा दिया है। किशन का उजड़ा घर बस गया। घर में खुशिहाली लौट आया।

श्वेता जैसे ही इक्कीस बरस की हुई, सुंदरता अपना पहचान बनाने चली। अनेक रिश्ते आये, अंत में हिमाँशु नाम के अच्छे लड़के के साथ श्वेता परिणय बंधन में बंध गई। श्वेता के पापा किशन लाल और मम्मी सुशीला हँसते-हँसते श्वेता को बिदा किये, लेकिन किशन लाल फिर एक बार दुख रूपी सरिता में डूबा सा नजर आने लगा, बड़ी जतन से पाला, पोसा आज मेरी दहलीज को छोड़ किसी दूसरे आँगन में शोभायमान होगी और अपने सद्व्यवहार से सबको खुशियाँ प्रदान करेगी। इस तरह विचार करते आँखों में किशन लाल के आँसू छलक आये। सुशीला किशन लाल को भावविभोर देखकर व्याकुलता के साथ बोली- श्वेता ने हम दोनों के आँसू पोंछकर हमारा नया संसार बसाकर अपनी नयी जिंदगी प्रारंभ करने जा रही है, हम श्वेता को अपनी ओर से कभी पीड़ा नहीं देंगे, बल्कि उसकी आँखों में खुशियाँ ही देखें ऐसा जीवन व्यतीत करेंगे और समाज को हम अपने सद्‌व्यवहार का परिचय देकर एक सीख देंगे कि ‘जिंदगी में तूफान आते हैं लेकिन इससे हार नहीं मानना चाहिए’।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

भारतीय गणना

आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!