मंगलवार, 23 जुलाई 2013

मर्यादा


पंडित कन्हैया लाल जी अपने गाँव नंदनपुर के साथ ही साथ पूरे इलाके के बड़े प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य के साथ ही प्रवचनकर्ता थे। उनके प्रवचन सुनने लोगों की अपार भीड़ देखते ही बनती थी। पंडित जी का व्यक्तित्व देखते ही बनता था। साथ ही उनका लिबास भी आकर्षक रहता था। परमसुख की धोती कोसा का कुरता, चमकता हुआ गले में दुपट्टा काफी आकर्षक लगता था। घोड़े की सवारी करते थे, बाजार-हाट, मण्डाई में जब पहुँचते तो उसके चरण छूने लोग दौड़ पड़ते थे जिसके घर में पंडित जी पहुँचे गये तो समझो उनके घरों में चार-चाँद लग गये। 

कुछ इस तरह उनको शोहरत ईश्वर की ओर से मिला था जो पण्डित जी के नजरों में आ जाते निहाल हो जाते थे। धन से पण्डित जी आबाद थे लेकिन कह गया है कि- ‘भगवान कहीं न कहीं कुछ न कुछ कमी कर देते हैं’ उनके आँगन में बच्चों की किलकारी का अभाव था। बड़ी पत्नी से कोई संतान न था। लाख उपवास, व्रत, मनौती के बाद भी तकदीर में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। गाँव के बड़े-बूढ़ों ने कहा- महराज..! आपकी बड़ी हवेली है और हवेली बिन दीपक के अंधियारा उचित नहीं है, अच्छा होता इसके लिए क्यों न दूसरी देवी ले आते। पण्डित जी गाँव के सियानों की बात मान कर चम्पा नाम की सीधी गंभीर स्वभाव वाली कन्या ब्याह कर ले आये। 

पण्डित जी की बड़ी पत्नी उमा सुशीला थी। काफी देवी-देवताओं को मानने वाली थी। भजन, पूजन में अधिकांश समय व्यतीत होता था। विपरीत परिस्थितियों में भी मुस्कुराना उसकी स्वभाव की पहचान थी। कुछ कालोपरांत भगवत कृपा से दोनों पण्डिताइन सगर्भा हो गई। दोनों की गोद में बड़ा प्यारा दुलारा आ गया। पण्डित जी नौ-निहाल हो गये, एक की कामना थी भगवान की ओर से दो पूत-सपूत निकले। विद्याधन के साथ ही वेद-शास्त्रों का अध्ययन करने लगे। युवा दहलीज पर कदम रखते ही दोनों पण्डित जी के लाल उँची शिक्षा प्राप्त करने अन्यत्र नगर चले गये। सही उम्र में पहुँचने पर दोनों का विवाह रमा और उषा के साथ सम्पन्न हो गया। बड़ा पुत्र सुधीर, छोटा पुत्र सुनील दोनों मित्रवत रहते थे, दोनों के बीच बलदाऊ और कृष्ण के समान मित्रता थी। ऊँची शिक्षा प्राप्ति के बाद दोनों को नौकरी मिल गई बड़ा सुधीर लड़का सुधीर शिक्षक हो गया और दूसरा लड़का सुनील अभियंता हो गया। एकदिन सुनील अपने अग्रज सुधीर से बोला- भैया..! एक बात कहूँ आप अपने बहू को आशीर्वाद दे दीजिए ताकि भगवान हम दोनों को सही सलामत रखे। सुधीर ने कहा- सुनील..! तुम्हारा भाग्य बड़ा प्रबल है, तुम अभियंता हो और तुम्हारी देवी भी पढ़ी लिखी और सुन्दर भी है। मैं कहाँ प्राथमिक शाला का शिक्षक और तुम्हारी भाभी भोली-भाली है, लेकिन मुझे इस बात का गर्व रहता है कि मेरा अनुज मेरा खूब आदर करता है और अपने भाभी को भाभी माँ कहकर सम्मान देता है। सच कहूँ सुनील मेरा छाती फूल जाता है। 

एकदिन पण्डित जी बोले- सुनील..! तुम अपने परिवार के साथ रहो, क्योंकि तुम्हारी नौकरी काफी परेशानी की नौकरी है। हाथ जलाना ठीक नहीं। सुधीर की मामूली नौकरी है घर पर रह कर मेरे काम में हाथ बँटायेगा और हम लोगों की सेवा करेगा। पण्डित जी के नेक सलाह से सुनील खुश हो गया अंधा चाहे दो आँख वाली बात हो गयी और अपनी पत्नी उषा के साथ सर्विस करने नागपुर चला गया। पण्डित जी के जीवन में बाँछे खिल गई। अखबार के पन्नों में उनका नाम सुर्खियों में आने लग गया। खुशी के दिन जल्दी बीत जाती है। कुछ दिनों बाद सुनील पिता बनने का स्वप्न देखने लगा। सुनील की पत्नी सगर्भा हो गई। एकाएक दर्द से व्याकुल होकर सुनील की पत्नी चिखने लगी। 

समीप के हॉस्पिटल में सुनील उषा को चेक कराने ले गया लेकिन कुछ भी राहत नहीं मिलने पर डॉक्टर बड़े हॉस्पिटल के लिए रिफर कर दिये। बड़े हॉस्पिटल के डॉक्टर ने कहा- मामला बड़ा रिस्की है फिर भी हम प्रयास करते हैं। सजल नेत्रों से अपने अग्रज सुधीर के पास पत्र भेजा। भैया आप जल्दी आ जावो। पत्र पाकर सुधीर जल्दी ही सुनील से मिलने गया। सुनील ने कहा- भैया..! जब आपकी बहू पहली बार अपने मायके से हमारे घर आयी थी तब आप पहली बार देखे थे। आज बेड पर पड़ी असहाय हो गई है, डॉक्टर ने जवाब दे दिया है। चलिए आप अंतिम क्षणों में देख लीजिए। जैसे ही आपात कक्ष में सुनील की पत्नी को देखने गया मरनासन्न स्थिति में राम-राम रट लगा रही थी जब सुधीर को देखा तो मेरे जेठ मेरे देवता हैं, भाव व्यक्त हुआ सुधीर फफककर रो पड़ा और सुनील को गले लगा कर भाई रे..! बहू को जब मैं पहली बार देखा था तब लक्ष्मी की तरह दमक रही थी आज अंतिम समय में भी मर्यादा का ख्याल रखकर देवी के रूप में परिलक्षित हो रही है। दोनों भाई लिपटकर रोने लगे। सुधीर ने कहा- भाई..! धीरज रखो सुहागिन होकर संसार से बिदा होना सौभाग्य की बात है और जीवन में जो मर्यादा का ख्याल रखते हैं और नारी जीवन पाने के यथार्थ को जो समझते हैं वही नारी सीता, सावित्री, अनुसुइया होती है। पतिव्रता धर्म ही नारी का आभूषण है इसका सदा ख्याल हमारे परिवार में हमारी बहूरानी ने रखा। कुछ देर बाद हॉस्पिटल के वार्ड ब्वाय ने खबर किया कि आप लोग कमरा नं. १४ से डेड बॉडी ले जायें। 

सुनील पर पहाड़ टूट गया उषा के पार्थिव शरीर को नंदपुर गाँव लाया गया। उसकी मातम-पुरसी में हजारों लोग पहुँचे थे। क्षण भर में चिता जलकर राख हो गया। अश्रुपुरित सजल नेत्रों से लोगों ने विदा किया। श्रद्धासुमन अर्पित किये जब सुनील घर पहुँचा माथे पर हाथ रख कर रो रहा था। तब सुधीर ने कहा- मेरे भाई..! यह संसार है संसार में सुख-दुख लगा रहता है। एक बात कहूँ... बहू की मर्यादा का पालन घर में सबको करना चाहिए। बहू आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन दीवार पर जो उसकी तस्वीर टंगी हुई है। देख उसमें मुस्कान है लेकिन मर्यादा सहित दिखाई दे रही है। मर्यादा ही जीवन का श्रृंगार है मर्यादामय जीवन जीते हुए संसार में पहचान बनाकर हमारी बहू दुनियाँ से चली गई लेकिन तुम अकेले नहीं हो, उसकी मर्यादा तुम्हारे साथ है। हम सब तुम्हारे सुख-दुख के सदैव भागी रहेंगे। ऐसा कहकर सुधीर भाई के सजल नेत्रों को अपने रूमाल से पोंछने लगा और हृदय से सुनील को लिपटा लिया।


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आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!