संसार के निर्माता की भी विचित्र महिमा है, अनेक जीवधारी के निर्माण में कितना समय लगा होगा, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। वैसे ही रामू भी अपने मिजाज का अलग ही आदमी था माँ-बाप ने किस जतन से रामू को पाला-पोसा था, क्या वे सोचे थे कि- उसका इकलौता पुत्र कपूत निकल जायेगा। रामू को पिता गोवर्धन ने उसके जीवन को संवारने विद्यालय भेजा, अनेक प्रयत्न के बावजुद रामू की स्थिति वैसे ‘जैसे मूरख हृदय न चेत, जो गुरु मिलहि विरंचि सम’ थक गया गोवर्धन सिर पीट लिया, जी तो यह चहता कि ठिकाने लगा दूँ, लेकिन प्रश्न खड़ा होता ‘आँखों का तारा’ तो है सारे सपने काफूर हो गये।
गोवर्धन नेक इंसान था। गाँव और समाज में उनके गुणों के कारण लोग उन्हें सिर बिठाते, प्रत्येक दुःख-सुख में गोवर्धन की पूछ परख होती। उसका स्वभाव था ‘जब आवै संतोष धन, सब धन धुरी समान’ थोड़े में गुजर करना और चैन की बंशी बजाना। शानों-शौकत आधुनिकता के चकाचौंध से कोसों दूर था, अपनी पत्नी को कहा करता था- लक्ष्मी..! सुन थोड़े में गुजर करना और सबसे प्रेम करना जीवन का सार है, दुनियाँ में कुछ कर गुजरना चाहिए। लक्ष्मी भी लक्ष्मी थी, पति के पदचिन्हों पर चलनेवाली थी। उनके पास एक गाय थी। नाम गौरी बड़ी सीधी, गोवर्धन के लिए तो कामधेनु थी। गोवर्धन और लक्ष्मी गौरी की सेवा ऐसे जैसे वशिष्ट की कामधेनु को राजा दिलीप किया करते थे, पंडित जी के प्रवचन में सुना जो था। गौरी भी ललचायी आँखों से देखती थी, कहा गया है- ‘मूक प्राणी को भी यदि प्यार दिये तो बड़े-बड़े पशु भी अधीन हो जाते हैं।’
गोवर्धन के यहाँ कोई कमी नहीं थी, केवल रामू की चिंता थी। कब बनेगा, एक पुत्र तो वह कुलदीपक हो गया तो, सात जन्म कृतार्थ हो जाता है। गोवर्धन कहता- रामू..! गौमाता के अंग में तैंतीस कोटि देवता का वास होता है। गाय की सेवा परमात्मा की सेवा है। पौं फटते ही गोवर्धन सेवा करने में गौरी का लग जाता। उसकी देवी लक्ष्मी चुनी, भूँसी दाना खिलाने में तन-मन से सहयोग देती लेकिन रामू जो निकला, निकम्मा, घोर आलसी, खाना, पीना, सोना साथ ही बुरी संगति।
दुनिया का रिवाज है सुख-दुःख, धूप-छॉंव, जीना-मरना। गोवर्धन के शरीर में घुन लगते जा रहे थे। चिंता के कारण चेहरे में झुर्रियाँ पड़ गयी थी, गाँव से कुछ दूर कौशलपुर में दीनानाथ चतुर्वेदी की ज्योतिषी की चर्चा हर जुबान पर होती। चलो रामू के जीवन की कहानी जानने। पंडित जी ने बताया- आपके रहते रामू कुछ नहीं कर पायेगा। चिंता करना व्यर्थ है। गोवर्धन घर आया, अपनी पत्नी को बोला लक्ष्मी पानी ले आ, इतने में गोवर्धन धड़ाम से गिर गया। अचेत हो गया, लक्ष्मी रोती बिलखती रह गई लेकिन चेत नहीं आया, कई युक्तियाँ की गई बैगा, ओझा कुछ कर भी पाते वह स्वर्ग सिधार गया। पति के वियोग में लक्ष्मी सिर पटक-पटक कर रोती। कहा गया है- ‘जब दुःख के दिन आते हैं तो बारी-बारी से आने लगती हैं।’ लक्ष्मी भी चारपाई पकड़ ली, उठने का नाम नहीं ली, उसके भी प्राण-पखेरू निकल गये।
रामू ये सब हादसा देखता रह गया। केवल घर में रामू और मूक प्राणी गौरी ही रह गये। क्या करता ‘हाथ मले और सिर धुनें वाली’ कहावत चरितार्थ हो गयी, गौरी के पास जाकर उससे लिपटकर रोना शुरू कर दिया। हाय..! मैं कितना अभागा हूँ बिन माँ-बाप के संसार अधूरा है एक कौड़ी की इज्जत नहीं रहती, लोग ताने मारते। गोवर्धन जब था तो रामू को लोग कहते- आँखों का तारा है, घर का दुलारा है, सबका प्यारा है। लोग उलाहना देते, माँ-बाप को खाने वाला, इज्जत मिट्टी पलित करने वाला, इससे तो अच्छा है निपूत रह जायें।
लोगों की आवाज को सुन- सुनकर उसके कान पक गये, ठाना- मैं उस पिता का पुत्र हूँ जिसने नाम कमाया- ‘जीना उसका भला जो औरों के लिये जीता है। मरना उसका भला जो अपने लिये जीता है।’ इरादे जब नेक होते हैं तो इंसान को नेक बनने में समय नहीं लगता, ठान लिया जीवन में कुछ करना है, सम्पत्ति तो नहीं है, अब केवल गोवर्धन का धन गौरी ही है और गौरी बछड़ा जन्मी दूध खूब देती, अब तो रामू के जीवन में बहार आई, गाँव के बड़े सयाने देख हतप्रभ हो गये। अमृत की तरह दूध... रामू को गाँव के लोग कहते रामू नहीं रामावतार है।
कोई अच्छी सुशील कन्या रामू के साथ में ब्याह कर दी जाये तो अच्छा रहता, रामू की शोहरत चारो ओर फैल गई। गाँव का सियाना भोला आया बोला- रामू...! अब तुम्हारे हाथ को साथ चाहिए। हम तुम्हारा विचार जानने आये हैं। रामू बोला- दादा..! जैसा आप लोग चाहेंगे मैं तैयार हूँ। प्रभू कृपा से जानकी के साथ में ब्याह कर दी गई।
अब तो जीवन में विचित्र मोड़ आ गया। एकदिन जानकी रामू को बोली- एक बात मेरी मानेंगे..! रामू बोला- सब बात मानता हूँ और क्या मानूँ बोल..! जानकी बोली- कुछ पढ़ लेते। रामू बोला- ठीक है..! जानकी रामू को पढ़ाने लग गई, छ: महिने में रामू रामायण बाँचना शुरू कर दिया। अब घर स्वर्ग बन गया सुबह शाम घर से आवाज गूँजती- ‘तुम्हारी कृपा तुम्ही रघुनंदन’ धन्य है गौरी गौ माँ, धन्य है लक्ष्मी जैसे धर्मपत्नी। रामू को लोग आदर से कहते रामावतार जी आप महान हैं। तभी तो संतों ने कहा है- ‘गम की अंधेरी रात में दिल को न बेकरार कर, सुबह जरुर आयेगी सुबह का इंतजार कर।’
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें