रविवार, 16 मार्च 2014

सराररा सुन ले मोर कबीर

होली का पर्व अटूट प्रेम का प्रतीक है। भक्त पर भगवान का अटूट प्रेम। प्रकृति भी प्रेम-रंग से सराबोर हो जाती है। पलास वृक्ष के लाल पुष्प- गुच्छों की छटा, भौरों का गुंजार, कोयल की मीठी कूक जन-मन में अद्भुत खुशियों का संचार करती है। लोग झूमते हैं, गाते हैं, एक-दूसरे से गले मिलते हैं जिससे शारीरिक ऊष्मा में वृद्धि हो जाती है। इस ऊष्मा का शमन करने के लिए पलास के रंग का एक-दूसरे पर छिड़काव कर स्नान किया जाता है। ताकि बंधुत्व (प्रेम) भाव का जोश लंबे समय तक बना रहे। लिया है।


आप भी इस बात से परिचित होंगे कि- होली में फाग-गीत गाने के पूर्व कबीर के दोहे बोले जाते हैं और दोहे के पूर्व-‘सनु ले सराररा मोर कबीर’! कहा जाता है। फाग-गीत में कबीर का क्या संबंध है और कबीर से सराररा का क्या संबंध हो सकता है? प्रत्येक फाग-गीत गायकों के द्वारा इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है। चूँकि परंपराएँ जन-कल्याण के लिए होती हैं। इस लिए इस परंपरा का भी कोई कल्याणकारी उद्देश्य होगा। इस पर भी विचार किया जाना चाहिए ।
आज तक के इतिहास में कबीर वह व्यक्तित्व है जो सर्वधर्म समभाव के सिदृधांत पर चलकर बुलंदी के साथ अपनी बात समाज के सामने रखी। उन्होने जातिवाद, वर्ग भेद, पॅूंजीवाद आदि सामाजिक दोषों को कभी स्थान नहीं दिया। कारण की सभी प्राणी एक ही परमात्मा के संतान हैं।, सभी में समान गुण हैं। सभी का शरीर पंचतत्वों से बना है और अंत में पंचतत्वों में ही होना है। इसलिए सर्वशक्तिमान, चराचर के स्वामी परमपिता परमात्मा से अटूट प्रेम करने का संदेश आजीवन समाज को देते रहे। यही जीवन कल्याण का वह मार्ग है जो आत्मा को परमात्मा से जुड़ना है। शायद इसी भाव धारा के कारण फाग-गीतों के पूर्व कबीर के दोहे प्रतीकात्मक रूप से बोले जाते हैं ताकि समस्त प्राणी जगत में परस्पर प्रेम का संदेश फैले। 

दूसरी बात कबीर का सराररा से संबंध की है, तो इस जानने के लिए कृपया आगामी होली पर्व की प्रतीक्षा करें ....

चन्द्रकुमार चन्द्राकर 
अर्जुन्दा
दिनांक - १६-०३-२०१४

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आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!