आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथ चरक संहिता और सुश्रुत में अलसी का उल्लेख मिलता है। ये ग्रंथ हजारों साल पुराने है अलसी का संस्कृत नाम अतसी, क्षुमा पिच्दिला, उमा है। हिन्दी में अलसी, तिसी और बीजरी कहा जाता है। मराठी में जवर या अलशी कहते हैं। गुजराती में अलसी या जवस के नाम से इसे जानते हैं। अलसी के कुछ नुस्खे-
- अलसी को भूनकर चूर्ण बनाकर शहद के साथ चाटने से खॉंसी, कफ में आराम मिलता है।
- अलसी का क्वाथ बनाकर पीने से जनेन्द्रीय की जलन, दाह में लाभ होता है। क्वाथ बनाने के लिए अलसी को पानी के साथ कुछ देर धीमी आँच पर उबालना चाहिये। फिर ठंडाकर छानकर पीना चाहिये।
- अलसी को जल में पीसकर उसमें थोड़ा दही मिलाकर फोड़ों पर लेप करने से वे जल्द पककर फूट जाते हैं।
- भूनी हुई अलसी पीसकरकरीब ढाई मासे की मात्रा रोज सेवनकरने से मूत्र, स्वेद (पसीना), दुग्ध एवं आर्तव में लाभ होता है। इससे आँत्र वेदना भी दूर होती है।
- कालीमिर्च और शहद के साथ इसका सेवन कामोद्दीपक और वीर्य को गाढ़ा करने वाला होता है।
- इसे भूनकर पीसकर शहद के साथ चाटने से प्लीहा शोथ (तिल्ली वृद्धि) में लाभ होता है।
- दमा रोगियों के लिए एक सरल नुस्खा है, अलसी के बीज साबुत आधा चम्मच, पानी पॉंच चम्मच को चॉंदी या कॉंच की कटोरी में 12 घंटे भीगोकर रख दें। बारह घंटे बाद यह पानी छानकर पीयें। सुबह भिगोया पानी रात को और रात में भिगोया सुबह नियमित लेने से दमा रोग में बहुत आराम मिलता है।
- दूसरा नुस्खा है अलसी को पीसकर जल में उबालें फिर एक घंटे तक ढँककर रख दें। बाद में छानकर मिश्री मिलाकर पियें। इससे कफ ढीला होकर सरलता से निकल जाता है और श्वॉंस रोगियों की घबराहट में भी आराम आता है।
- पुराने नजला-जुकाम रोगियों को भुनी हुई अलसी को पीसकर उसमें समभाग मिश्री पीसकर मिला लें और एक डिब्बी में भरकर रख लें। गर्म जल के साथ सुबह शाम एक-एक चम्मच यह चूर्ण कुछ दिन तक लेने से कफ सरलता से निकल जाता है और जुकाम ठीक हो जाता है।
- आग से जले पर अलसी का तेल और चूने का पानी समभाग मिलाकर खूब घोंटें। यह सफेद मलहम की तरह बन जाता है। अँग्रेजी में इसे केरन ऑयल कहते हैं। इस मलहम को जले स्थान पर लेपकरने से पीड़ा और जलन मिटती है और घाव जल्दी भरते हैं।
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