- हमें दिन में सिर्फ सुबह और शाम, दो बार ही भोजन करना चाहिये। सुबह के समय और शाम के समय पाचन तंत्र बहुत अच्छी तरह भोजन पचाता है, क्योंकि सूर्योदय से 2 घंटे बाद तक और सूर्यास्त से ढाई घंटे पहले तक जठराग्नि (भूख) पूरे प्रभाव में रहती है। शेष समय में यदि भूख लगे तो फलाहार या हल्का भोजन किया जा सकता है। हर रोज मौसमी फलों का भी सेवन अवश्य करना चाहिये।
- कभी भी एकदम भरपेट भोजन नहीं करना चाहिये। भूख से थोड़ा सा कम भोजन सेहत को फायदा पहुँचाता है। जो लोग भूख से थोड़ा कम खाना खाते हैं, वे सेहतमंद, दीर्घायु, बलवान, सुखी और सुन्दर शरीर प्राप्त करते हैं। ऐसे लोगों की संतान भी गुणवान होती है। जबकि जो लोग भूख अधिक भोजन करते हैं, वे आलसी प्रवृत्ति के हो जाते हैं और उन्हें कई प्रकार की बीमारियाँ होने की संभावनायें काफी अधिक होती हैं।
- मान्यता है कि हम जब भी खाना खायें तब हमारा मुँह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिये। भोजन करने के लिए ये दिशायें शुभ मानी गई हैं। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन नहीं करना चाहिये, क्योंकि शास्त्रों के अनुसार ऐसे भोजन नकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। यदि हम हमेशा पश्चिम दिशा की ओर मुख करके ही भोजन करते हैं तो इससे शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता कम हो सकती है।
- पलंग पर बैठकर या खड़े होकर भोजन नहीं करना चाहिये। इस बात का भी ध्यान रखें कि टूटे-फूटे बर्तनों में भी भोजन नहीं करना चाहिये। इससे नकारात्मक ऊर्जा आती है। आलस्य बढ़ता है।
- कभी भी रात के समय ज्यादा भोजन नहीं करना चाहिये। साथ ही, यह भी ध्यान रखें कि खाना खाने के तुरंत बाद सोना नहीं चाहिये। इससे पाचन तंत्र कमजोर होता है।
- कभी भी परोसे गए भोजन की निंदा नहीं करनी चाहिये। ऐसा करने पर भोजन का अपमान होता है और उससे हमें शारीरिक ऊर्जा प्राप्त नहीं हो पाती है। प्रसन्न मन से भोजन करना चाहिये।
- भोजन करने से पहले अन्न देवता और अन्नपूर्णा माता का ध्यान करना चाहिये। उन्हें नमन करने के बाद ही भोजन ग्रहण करना चाहिये। साथ ही, ऐसी प्रार्थना करें कि सभी भूखों को भी ईश्वर भोजन प्रदान करें।
- व्यक्ति को हमेशा शुद्ध मन और शुद्ध शरीर से भोजन बनाना चाहिये। यदि संभव हो तो भोजन बनाने से पहले देवी-देवताओं के मंत्रों का जप करना चाहिये।
- यदि कोई व्यक्ति सभी को बता-बताकर आपको खाना खिलाए तो ऐसा भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिये।
- किसी कुत्ते के द्वारा खाना छू लिया गया हो तो ऐसा खाना न खायें ।
- पुरानी परंपराओं के अनुसार कभी भी आधा खाया हुआ फल, मिठाईयाँ या शेष बचा हुआ भोजन बाद में पुन: नहीं खाना चाहिये। साथ ही, यह भी ध्यान रखें कि एक बार खाना छोड़कर उठ जाने पर पुन: भोजन नहीं करना चाहिये।
- भोजन के समय मौन रहना चाहिये। खाते समय बातचीत करने से पाचन ठीक से नहीं हो पाता है।
- भोजन को बहुत चबा-चबाकर खाना चाहिये। एक पुरानी कहावत है- खाने को पीना चाहिये और पानी को खाना चाहिये। इसका अर्थ यह है- खाने को इतना चबायें कि वह पानी की तरह बन जायें और भोजन के बीच में कम से कम पानी पीना चाहिये।
- यदि किसी परिस्थिति में खाना खाने से आपका अनादर हो रहा हो तो वह भोजन भी न खायें ।
- यदि अवहेलना पूर्ण व्यवहार के साथ भोजन परोसा गया हो तो वह भी नहीं खाना चाहिये।
- खाना खाने से पहले हमें अपने पाँच प्रमुख अंगों (दोनों हाथ, दोनों पैर और मुख) को अच्छी तरह धो लेना चाहिये। इसके बाद भी भोजन करना चाहिये।
- 1आमतौर पर किसी भी गृहस्थ व्यक्ति को एक समय में 320 ग्राम से ज्यादा भोजन नहीं करना चाहिये।
- भोजन करते समय सबसे पहले रसदार भोजन करें। इसके बाद गरिष्ठ भोजन करें और अंत में तरल पदार्थ ग्रहण करना श्रेष्ठ रहता है।
- भोजन बनाते समय सबसे पहले 3 रोटियाँ अलग निकाल लें। इन रोटियों में से एक रोटी गाय को, एक रोटी कुत्ते को और एक रोटी कौए को दें। भोजन ग्रहण करने से पहले अग्नि देव और अन्य देवी-देवताओं को भी भोग लगाना चाहिये।
- यदि आप चाहते हैं कि आप जो भी खायें वह तुरंत पच जाए तो इन भावों के साथ कभी भी भोजन न करें। ये भाव हैं ईर्ष्या भाव, भय, क्रोध, लोभ, दीन भाव, द्वेष भाव आदि। इन भावों के साथ किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है।
शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015
खाना खाते समय कौन-कौन सी बातों का ध्यान रखना चाहिये...
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भारतीय गणना
आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!
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भारत की आजादी के आंदोलन में सक्रिय योगदान देकर एवं तत्कालीन भारत में चल रहे राजनैतिक-सामाजिक परिवर्तन तथा आर्थिक मुक्ति आंदोलन में हिस्सा ले...
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