बुधवार, 15 जून 2011

स्व और समाज को जानो

मनुष्य ईश्‍वरीय सत्ता का सबसे उत्कृष्ट और अद्भूत रचना है। पूरे ब्रह्माण् की समस्त जीवधारियों में मानव ही एक ऐसा सामाजिक-संस्कारिक प्राणी है जो ईश्‍वर के सबसे निकट है, क्योकि परमात्मा ने मनुष्य को बौद्धिक शक्ति तथा तार्किक शक्ति प्रदान कर समस्त जीवों से अलग रखा है। दुनिया के मालिक द्वारा प्रदत्त बुद्धि और तर्क के माध्यम से आज मानव भले ही सब कुछ जानने को आतुर है यहाँ तक ब्रह्माण्ड के रहस्यों से पर्दा उठाने का प्रयास कर रहा है, परन्तु मानव एक ही भूल कर रहा है कि वह सबकुछ जानते हुए स्वयं और समाज को नहीं पहचान पा रहा है जिस दिन व्यक्ति स्वयं को जान जायेगा दुनिया को जान जायेगा। इसके लिए व्यक्ति का ईश्‍वर पर तथा समाज पर विश्‍वास होना चाहिए। व्यक्ति का जितनी आस्था ईश्‍वर पर होनी चाहिए उतनी ही विश्‍वास खुद पर तथा समाज पर भी होनी चाहिए, क्योंकि जीवन से संबंधित महत्वपूर्ण तीन रहस्य जन्म-विवाह-मृत्यु पर किन-किन सत्ता का प्रभाव होता है इसकी जानकारी होना बहुत ही आवश्यक है। आईये इस पर तर्क करें

जन्म-विवाह-मृत्यु पर ईश्‍वरीय सत्ता का प्रभाव
मनुष्य के जन्म-विवाह-और मृत्यु के संदर्भ में अनेकों विचार प्रस्तुत किये गये हैं और भविष्य में अनेकों विचार आते-जाते रहेंगे। इस संबंध में महान विद्वानों एवं दार्शनिकों ने स्वीकार किया है कि, दुनिया में जो भी होता है, वह सर्वशक्तिमान परमपिता परमेश्‍वर की परम सत्ता का क्रियात्मक रूप है। एक व्यक्ति के रूप में मनुष्य का जन्म उनकी ईच्छा है विवाह उनकी कृपा है, तथा मृत्यु उनकी मर्जी है। अतः कह सकते हैं कि, जन्म-विवाह और मृत्यु पर केवल एक ही शक्ति का अधिकार है जिसे ईश्‍वरीय शक्ति कहा गया है। इन पर किसी दूसरी शक्ति का कोई वश नहीं चलता।

जन्म-विवाह-मृत्यु पर कर्म का प्रभाव-
कर्म की प्रधानता पर बल देने वाले लोग व्यक्ति के जन्म-विवाह-तथा मरण पर कर्म का प्रभाव बताये हैं, यदि व्यक्ति अच्छा कर्म करता है तो उसे अच्छा फल मिलता है और उसका जन्म अच्छे परिवार एवं समाज में होता है। वह पारिवारिक एवं सांसारिक सुख भोगता है तथा मोक्षिक मृत्यु को प्राप्त कर स्वर्गिक सुख के परम आनंद को प्राप्त करता है। इसी प्रकार बुरा कर्म का प्रभाव बुरा होता है। अस्तु कहा गया है-
कर्म प्रधान विश्‍व करि राखा,
जो जस करहि तसु फल चाखा ॥

जन्म-विवाह-मृत्यु पर भाग्य का प्रभाव-
मनुष्य के जीवन में भाग्य का भी महत्व प्रतिपादित किया गया है। भाग्य पर विश्‍वास करने वाले लोग भाग्य विधाता द्वारा बनाये गये लेख को सब कुछ मानकर ही अपने मन को संतुष्ट कर लेते हैं, कि वही होगा जो भाग्य में लिखा होगा, उसे टाला नहीं जा सकता अर्थात धन-दौलत-शोहरत-ईज्जत-रूपया-पैसा-कुटुम्ब-परिवार व्यक्ति को भाग्य के अनुसार प्राप्त होता है।

जन्म-विवाह-मृत्यु पर समाज का प्रभाव
मानव जीवन के प्रमुख तीन गति जन्म-विवाह-मृत्यु पर भले ही किसी सत्ता, कर्म अथवा भाग्य का प्रभाव हो या न हो उसके जीवन में जन्म से मृत्यु तक समाज का प्रभाव रहता है क्योंकि मनुष्य जन्मजात सामाजिक प्राणी होता है अतः व्यक्ति को समाज का महत्व समझना ही चाहिए। किसी बालक के जन्म में भले ही माता-पिता की अहम भूमिका होती हो वैसे ही विवाह के समय लड़का और लड़की के घरवालों की भूमिका एवं जिम्मेदारी अधिक होती है उसी प्रकार किसी व्यक्ति के मृत्यु पर शोक संतप्त परिवार अधिक दुखी होते हैं फिर भी जन्म और विवाह की खुशियाँ तथा मृत्यु पर शोक सामाजिक तौर पर ही मनायी जाती है। क्योंकि, व्यक्ति का जन्म-विवाह और मृत्यु संस्कार सामाजिक प्रक्रिया का एक अंग है। समाज के बिना सभी संस्कार अधूरा है अतः व्यक्ति को समाज का महत्व समझते हुए समाज के प्रति कृतज्ञ होनी चाहिए और समाज के प्रति आस्था तथा विश्‍वास रखकर समाजिक क्रियाकलापों में भाग लेना चाहिए और मान्यताओं के अनुरूप सामाजिक जीवन व्यतीत करना चाहिए। उसे समाज द्वारा बनाये गये सामाजिक नियमों का पालन करना चाहिए। उसके रहन-सहन, आदत-व्यवहार, खान-पान तथा पहनावा एवं रीति-रिवाज सामाजिक मर्यादा के अनुरूप होनी चाहिए।

अतः सामाजिक जीवन को बेहतर एवं सफल बनाने के लिए निम्न तरीकों से समाज के प्रति कृतज्ञतापूर्वक सम्मान प्रकट करना व्यक्ति का परम कर्तव्य है-प्रत्येक व्यक्ति अपने समाज से प्यार करें एवं समाज सेवा के लिए समर्पण का भाव रखें। हम यह कभी न सोंचे की समाज हमारे लिए क्या किया है, बल्कि हम यह सोंचे कि हमने समाज के लिए क्या किया है तथा समाज को हमने क्या दिया है।

अपनी समाज तथा संस्कृति पर गर्व करें तथा तीज त्यौहार एवं पर्वों को उत्साह पूर्वक सद्भावना के साथ मिलजुल कर मनायें। सामाजिक आयोजनों एवं क्रियाकलापों में भाग लें तथा समाज के समग्र विकास और उससे जुड़े अन्य मुद्दों पर चर्चा करें। जाति, कुल तथा समाज पर गर्व करें। समाज के इतिहास पुरूषों का पुण्य स्मरण करें तथा समाज की प्रतिभाओं का सम्मान कर।परम्परावादी एवं रूढ़िवादी न बनें, बल्कि जनहित के लिए बनाये गये सामाजिक नियमों का पालन करें। 

इतिहास साक्षी है, जब किसी भी युग में परिवर्तन की लहर उठी, मान्यताएँ पुन: परिभाषित हुई, नये विचारों और तर्कों पर सहमति की व्यापक मुहर लगी या जमाने की रफ्तार और हवा को अपने अनुरूप ढालने का साहसिक कदम उठाया गया। तब केन्द्रीय भूमिका में युवा खून की गर्मजोशी, जुझारू स्वभाव, कुछ कर गुजरने की उर्जा और पैनापन ही काम आया, विभिन्न परिस्थितियों और सामाजिक व्यवस्था में युवा पीढ़ी ने कई बार अपने अनुसार बदलाव किया, पुराने ढर्रे पर नवीनीकरण का लबादा ओढ़ाया, और यह जताया कि-
`जमाना हमसे है, जमाने से हम नहीं

मौजूदा दौर में भी समाज की युवा पीढ़ी ने स्वयं को अपने तरीके से परिभाषित किया है और जमाने को अपनी तरफ झुकाया है। आज की युवा पीढ़ी के सामने कई चुनौतियाँ हैं, उन चुनौतियों को पूरा करने का साहस भी उनमें है। उसका व्यक्तित्व एक नहीं कई खूबियों से भरा पड़ा है। वे आत्मविश्‍वास से भरपूर हैं, आत्मनिर्भर हैं। साहस से भरपूर जोखिम भी मंजूर है उन्हें। स्मार्ट हैं, एनर्जेटिक हैं।
जो चट्टानों को चटका दे, उसे रवानी कहते हैं,
जो दिलों में नक्श हो जाये उसे कहानी कहते हैं।
हार, थकान और हताश बातें हैं कमजोरों की,
उलट दे जो हिमालय उसे जवानी कहते हैं।

लड़कियाँ भी पीछे नहीं है। वे आत्मनिर्भर बन रही हैं। अनेक लड़कियाँ- इंजीनियरिंग और एम.बी.ए. के क्षेत्र में आगे बढ़कर देश के विभिन्न राज्यों और महानगरों में शीर्ष पदों पर काबिज हैं। ये लड़कियाँ बेहतर भविष्य और समाज की नींव हैं, जो लगातार मजबूत हो रहीं हैं। ये शिक्षित हैं, बाहरी दुनिया से सरोकार रखती हैं, आत्मविश्‍वास इनमें कूट-कूट कर भरा है और अब वे लड़की होने के आदिम भय से मुक्त होने लगी हैं। युगों-युगों से छाया कुहासा अब छँट रहा है, धीरे ही सही लेकिन कुहासे के बीच उभर रहें हैं, साफ आसमान पर चमकते इन जैसी तमाम लड़कियों के चेहरे। दूसरा पहलू भी हमारे सामने हैं। यह संस्कृतियों का संक्रमण काल है। पूरे विश्‍व की संस्कृतियाँ एक छोर से दूसरे छोर तक घूम रही है और एक दूसरे देश को प्रभावित कर रही है। आज हमारी युवा पीढ़ी पश्‍चिमी संस्कृति से आक्रांत हैं जबकि पश्‍चिमी देश हमारे आस्था मूल्यों पर फिर से जीने को विवश हैं। आज का समय बीती हुर्इ तमाम सदियों के सबसे कठिन समय में से है। जहाँ समाज की सनातन परंपराएँ, उसके मूल्य और हमारा अपना जीवन ऐसे संघर्षों के बीच घिरा है, जहाँ से निकल पाने की राह आसान नहीं दिखती। परंपरावादी, सांस्कृतिक वैभव से भरे पूरे और जीवंत समाज के सामने भी आज का यह समय बहुत चुनौतियों के साथ खड़ा है।

सारांश यह कि उत्कर्ष के साथ ही मूल्यहीनता का भी ग्राफ तेजी से बढ़ा है। इसलिये सुनिश्‍चित लक्ष्य के निर्धारण के साथ ही हम अपने चिरंतन इतिहास और आदर्श का ध्यान रखें। समाज की शाश्‍वत परंपरा तथा आदर्शों के प्रति सचेत न होने पर विश्रृंखला पूर्ण समृद्धि आयेगी और संभव है कि अंतत: वह समाज को प्रगति के स्थान पर अधोगति की ओर ही ले जाए। फिर भी हम आशान्वित हैं कि वह दिन भी आयेगा जब यह संक्रमण काल भी खत्म होगा और जब युवा पीढ़ी अपनी ही धरती पर से विश्‍वास के साथ भले-बुरे की पहचान कर पायेगी। नौजवानी शून्य की जड़वत सतह के रूखेपन में जकड़कर भी कम से कम करवट तो बदल ही लेती है। इसी खासियत के कारण नौजवानों के परिवर्तन का प्रतीक कहा जाता है।

परिवर्तन आकांक्षा का अंतिम परिणाम हैं। प्रगति गति पर निहित है और गति यदि सद्‌गति हो तो सही मायनों में हमारी कालयात्रा सही पड़ावों पर बसेरा करेगी और सही मुकाम पर पहुँचेगी। मैं अपने युवा साथियों को आह्वान करता हूँ कि वे आगे आयें- वे सकारात्मक कुछ ऐसा करें कि जमाना देखता रह जाये। परिवर्तन ला सकने की शक्ति आपमें और हममें ही है। बस एक बार आपको, हमको उठ खड़े होने की देर है। याद रखें, मेरे मित्रों...
शब्दों को भी शमशीर बना सकते हैं,
हम पानी पर भी तस्वीर बना सकते हैं।
तकदीर की न कोई बात करे हमसे,
तकदीर की भी तकदीर बना सकते हैं हम।

ओंकारेश्‍वर सिंह हरमुख


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