जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं।
एक ओर नारी सुलभ गुणवती, लज्जावती तथा स्नेह और ममतामयी होती है वही समय आने पर घर परिवार तथा समाज के लिए त्याग और समर्पण के साथ मर्यादापूर्वक कंधा से कंधा मिलाकर सेवा के लिए तत्पर रहती है जो नारियाँ सीता, सावित्री तथा रानी लक्ष्मीबाई और रानी दुर्गावती को अपना आदर्श मानती है, उनमें दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती का दर्शन सहज ही किया जा सकता है। नारी प्रत्येक रूप में पूज्यनीय है।
भारतीय महिलाओं के नाम के साथ देवी शब्द जोड़कर नारी को सदा उच्च स्थान प्रदान दिया जाता रहा है उसे मातृशक्ति का प्रतीक माना गया। इतिहास गवाह है कि, भारतीय समाज वैदिक काल से ही नारी शक्ति का उपासक रहा है जिस समाज में नारी की पूजा होती है तथा नारी शक्ति को उचित सम्मान दिया जाता है वहाँ देवता निवास करते हैं, अर्थात घर स्वर्ग बन जाता है और वहाँ निवास करनेवाले को समस्त सुख-सुविधाएँ स्वमेव प्राप्त होने लगती है आनंद और उल्लास का वातावरण निर्मित होने लगता है और घर एक मंदिर बन जाता है।
लक्ष्मी स्वरूप-
जब नारी अपने संतान तथा अपने परिवार जनों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी स्वयं उठाते हुए धनअर्जन करती है तथा अपने हाथों से भोजन पकाती है और परोस कर खिलाती है तब वह लक्ष्मी स्वरूप होती है। सरस्वती स्वरूप- जब नारी अपने में निहित शिक्षा संस्कार संस्कृति सभ्यता तथा ज्ञान को अपनी संतान, परिवार तथा समाज में बांटती है तब वह सरस्वती स्वरूप होती है। इस स्वरूप में वह अपना स्नेहसिक्त, सहयोग, समर्पण का ज्ञान प्रदान कर व्यक्ति को अस्तित्व प्रदान करती है जिससे उसे विस्तार वैभव तथा सत्तात्मक सुख प्राप्त होता है।
काली स्वरूप-
जब नारी अपनी सहजता सरलता तथा सुंदरता के विपरीत अपमान, अत्याचार और शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए तथा मर्यादाओं का उलंघन करते हुए भयंकरता का प्रदर्शन करती है तब वह काली क्या महाकाली बन जाती है। ऐसे समय में शस्त्र उठाकर किसी को मारे या स्वयं मर कर सती हो जाय तो कोई अतिशंयोक्ति नहीं होगी।
दुर्गा स्वरूप-
नारी मनुष्य का जन्मदात्री है वह अपना पयपान कराती है तथा संतान को सुरक्षा, सुविधा, स्नेह और दुलार प्रदान करती है। जब एक तरूणी कन्या वैवाहिक जीवन स्वीकार कर अपना जीवन साथी चुनकर परिवार और समाज की सृजन शीलता के लिए आगे कदम बढ़ाते हुए माँ बनती है तब वह जननी के रूप में दुर्गा स्वरूप होती है। इस समय नारी की सुन्दरता, ममता, स्नेह तथा शक्ति और साहस का दर्शन सभी करते है।
नारी सम्मान की आवश्यकता-
कोई भी समाज तथा देश तब तक विकास नहीं कर सकता जब तक वहाँ नारी को उचित स्थान एवं सम्मान प्राप्त न हो। हमें नारी को मूल रूप में स्वीकार करना होगा, नारी भोग्या नहीं पूज्या है जिस देश में नारी को भोग की वस्तु समझा गया उनकी हालात किसी से छिपी नहीं है हालात बद से बदतर होते जा रहे है धन्य है हमारे तथा भारतीय समाज जिनमें नारी को माँ, बेटी, बहन तथा बहू एवं जीवन संगिनी के रूप में स्वीकार किया गया तथा घर और समाज में उचित स्थान प्रदान किया गया है जिससे महिला वर्ग घर एवं समाज में सम्मानित एवं गौरवपूर्ण जीवन व्यतीत कर रही है। भारतीय महिलाओं के नाम के साथ देवी शब्द का प्रयुक्त होना इस बात का परिचायक है क्योंकि भारतीय नारी स्वभावतया दया, करूणा, ममता, सेवा, सद्भावना तथा उदारता जैसी देववृत्तियों को अपने में समेटे रहती है। ये देववृत्ति उसे जन्मजात ईश्वर प्रदत्त उपहार स्वरूप मिली होती है। इसी शक्ति से वे पुरूषों को अनाचार, अत्याचार तथा अधर्म से रोकती भी है।
नारी सावधान-
वर्तमान में नारी पाश्चात्य सभ्यता और विकृत संस्कृति की दौड़ तथा आधुनिकता (मार्डन फैसन) के पीछे पड़कर नारी स्वतंत्रता का दुरूपयोग करते हुए मर्यादाओं का उलंघन नारी वर्ग द्वारा स्वयं किया जा रहा है ऐसे भारत की पूज्य माताओं, बहनों से निवेदन है कि, पाश्चात्य संस्कृति एवं आधुनिकता से बचें तथा भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के साथ सामाजिक मान्यता के अनुरूप रहकर नारी सुलभ व्यवहार करें और मान्य आचरण को अपनाये।
आधुनिकता की झलक हमारे शरीर पर नहीं बल्कि हमारे सोंच विचार एवं व्यवहार में दिखाई पड़े जिससे हम रूढ़ीवादिता, अंधविश्वास, तथा कट्टरपंथी मान्यताओं और दकियानूसी विचारधाराओं को बदलकर नवीन चेतना जागृत करें तथा घर परिवार और समाज को नई दिशा प्रदान कर सामाजिक एकता एवं अखंडता को बनाये रखने में अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रस्तुत करें और अपने आप को गौरवान्वित महसूस करें। मैं मानव के प्रथम उपकारकर्ता मातृशक्ति तथा नारी शक्ति को कृतज्ञतापूर्वक नमन करता हूँ...
नारी तुम नारायणी और कल्याणी हो।
तीन प्रत्यक्ष देवता माता-पिता-गुरू में माता प्रथम देव है।
नारी ब्रह्मविद्या है, श्रद्धा है, शक्ति है, कला है, सबकुछ है।
ओंकारेश्वर सिंह हरमुख
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