सोमवार, 11 जुलाई 2011

बिहान होगे रे

बिहान होगे रे
उठो उठो भइया,
बिहान होगे रे
चिरइ चहचहावत हे,  
हवा सुरसुरात हे ।
झिंगुरा झिन-झिन करत जाय
घुघवा घुघवात हे ।

रतिहा के संगी मितान होगे रे
तरिया मा भाप उड़त जाय,
जाड़ म दाढ़ी कँपकँपाय
बाहरी अँगना म नाचय
ढेंकी अउ बाहना मन बाजय ।

कोठा म बछरु के रंभान होगे रे
दाई ह छरा छिटकत हे
कुकरा कुकरूँस-कूँ बासत हे
खड़फड़ी गाय के खड़खड़ाय
गोल्लर भूँकरूस-भूँ भूँकरत हे

पहाती के सुकवा के मुसकान होगे रे
रंधनी के छानी गुँगवाय
भउजी ह पानी भरे ला जाय
चूरी खनखनात हे
पैरी छन-छन बाजत जाय

चंदा बंडरागे उत्ती लाल होगे रे
पाहटिया नोई घर के आय
डोकरा खोर-खोर खाँसत हे
बाबू पहाड़ा पढ़त जाय
नोनी कविता बाँचत जाय
छानी में कउंवाँ के कउवाँन होगे रे

कुरिया म जाँता घरघराय
चुलहा म चाय खलबलाय
कोटना म भूँसा ल बोरय
ददा गरवा निकलाय
सोनहा अँजोर के छरियान होगे रे
उठो-उठो भइया बिहान होगे रे...

रमेश यादव
ग्राम-पेण्ड्रीपोष्ट-कलंगपुर

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