धरती गोहरात हे...खोंधरा मा बइठे सल्हइ ह,गोड़ेला के पिला चिरई हचिंव-चिंव कहिके चिल्लात हे,चलव उठव धरती दाई गोहरात हे ...सुते के समे नाँहकगे,दबका के दिन बाँहकगेअब कोन हबकाही तुँहलासब अपने-अपने बाँचगे ।तुँहला बलाय बर,ओदे सूरूज भाई आत हे ...करम के खेती हे परिया,तरसत हे खेत के परियामया के माला अरोये,रसता जोहत हे बहुरिया ।सोन-सोन के फूल-फूले,बंबूर ह मुसकात हे ...आन के लउठी काम नइ आयअपन लउठी म साँप मरथेआन के भरोसा मा काम नइ करे,अपने बाँह ले काम सरकथेखुशी के खजाना ह,भीतरे-भीतर खलखलातहेरमेश यादवग्राम-पेण्ड्री, पोष्ट-कलंगपुर
सोमवार, 11 जुलाई 2011
धरती गोहरात हे..
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भारतीय गणना
आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!
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भारत की आजादी के आंदोलन में सक्रिय योगदान देकर एवं तत्कालीन भारत में चल रहे राजनैतिक-सामाजिक परिवर्तन तथा आर्थिक मुक्ति आंदोलन में हिस्सा ले...
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