शरीर में ओमेगा-3 की कमी व इन्फ्लेमेशन पैदा करने वाले ओमेगा-6 के ज्यादा हो जाने से प्रोस्टाग्लेन्डिन-ई 2 बनते हैं जो लिम्फोसाइट्स व माक्रोफाज को अपने पास एकत्रित करते हैं व फिर ये साइटोकाइन व कोक्स एंजाइम का निर्माण करते हैं। और शरीर में इनफ्लेमेशन फैलाते हैं। जिस प्रकार एक अच्छी फिल्म बनाने के लिए नायक और खलनायक दोनों ही आवश्यक होते हैं। वैसे ही हमारे शरीर के ठीक प्रकार से संचालन के लिये ओमेगा-3 व ओमेगा-6 दोनों ही बराबर यानी 1:1 अनुपात में चाहिये। ओमेगा-3 नायक हैं तो ओमेगा-6 खलनायक हैं। ओमेगा-6 की मात्रा बढ़ने से हमारे शरीर में इन्फ्लेमेशन फैलते हैं तो ओमेगा-3 इन्फ्लेमेशन दूर करते हैं, मरहम लगाते हैं। ओमेगा-6 हीटर है तो ओमेगा-3 सावन की ठंडी हवा है। ओमेगा-6 हमें तनाव, सरदर्द, डिप्रेशन का शिकार बनाते हैं तो ओमेगा-3 हमारे मन को प्रसन्न रखते हैं, क्रोध भगाते हैं, स्मरण शक्ति व बुद्धिमत्ता बढ़ाते हैं। ओमेगा-6 आयु कम करते हैं। तो ओमेगा-3 आयु बढ़ाते हैं। ओमेगा-6 शरीर में रोग पैदा करते हैं तो ओमेगा-3 हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। पिछले कुछ दशकों से हमारे भोजन में ओमेगा-6 की मात्रा बढ़ती जा रही हैं और ओमेगा -3 की कमी होती जा रही है। मल्टीनेशनल कम्पनियों द्वारा बेचे जा रहे फास्ट फूड व जंक फूड ओमेगा-6 से भरपूर होते हैं। बाजार में उपलब्ध सभी रिफाइंड तेल भी ओमेगा-6 फैटी एसिड से भरपूर होते हैं। हाल ही हुई शोध से पता चला है कि हमारे भोजन में ओमेगा-3 बहुत ही कम और ओमेगा-6 प्रचुर मात्रा में होने के कारण ही हम उच्च रक्तचाप, हृदयाघात, स्ट्रोक, डायबिटीज़, मोटापा, गठिया, अवसाद, दमा, कैंसर आदि रोगों का शिकार हो रहे हैं। ओमेगा-3 की यह कमी 30-60 ग्राम अलसी से पूरी कर सकते हैं। ये ओमेगा-3 ही अलसी को सुपर स्टार फूड का दर्जा दिलाते हैं। स्त्रियों को संपूर्ण नारीत्व तभी प्राप्त होता है जब उनके शरीर को पर्याप्त ओमेगा-3 मिलता रहता है।
अलसी हमारे रक्तचाप को संतुलित रखती है। अलसी हमारे रक्त में अच्छे कॉलेस्ट्रॉल (HDL-Cholesterol) की मात्रा को बढ़ाती है और ट्राइग्लीसराइड्स व खराब कॉलेस्ट्रॉल (LDL-Cholesterol) की मात्रा को कम करती है। अलसी दिल की धमनियों में खून के थक्के बनने से रोकती है ओर हृदयाघात व स्ट्रोक जैसी बीमारियों से बचाव करती है। अलसी सेवन करने वालों को दिल की बीमारियों के कारण अकस्मात मृत्यु नहीं होती। हृदय की गति को नियंत्रित रखती है और वेन्ट्रीकुलर एरिद्मिया से होनेवाली मृत्युदर को बहुत कम करती है।
अलसी में दूसरा महत्वपूर्ण पौष्टिक तत्व लिगनेन होता है। अलसी लिगनेन का सबसे बड़ा स्रोत हैं। अलसी में लिगनेन अन्य खाद्यान्नों से कई सौ गुना ज्यादा होते हैं। लिगनेन एन्टीबैक्टीरियल, एन्टीवायरल, एन्टी फंगल और कैंसर रोधी है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। लिगनेन कॉलेस्ट्रोल कम करता है और ब्लड शुगर नियंत्रित रखता है। लिगनेन सचमुच एक सुपर स्टार पोषक तत्व है। लिगनेन पेड़ पौधों में ईस्ट्रोजन यानी महिला हारमोन के तरह कार्य करता है। रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में ईस्ट्रोजन का स्त्राव कम हो जाता है और महिलाओं को कई परेशानियाँ जैसे हॉट फ्लेशेज़, ओस्टियोपोरोसिस आदि होती हैं। लिगनेन इन सबमें बहुत राहत देता है।
लिगनेन मासिक धर्म संबंधी अनियमितताएं ठीक करता है। लिगनेन हमें प्रोस्टेट, बच्चेदानी, स्तन, आंत, त्वचा आदि के कैंसर से बचाता हैं। यदि मां के स्तन में दूध नहीं आ रहा है तो उसे अलसी खिलाने के 24 घंटे के भीतर स्तन में दूध आने लगता है। यदि मां अलसी का सेवन करती है तो उसके दूध में प्रर्याप्त ओमेगा-3 रहता है और बच्चा अधिक बुद्धिमान व स्वस्थ पैदा होता है।
एड्स रिसर्च असिस्टेंस इंस्टिट्यूट (ARAI) सन् 2002 से एड्स के रोगियों पर लिगनेन के प्रभावों पर शोध कर रही है और आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए हैं। ARAI के निर्देशक डॉ. डेनियल देव्ज कहते हैं कि जल्दी ही लिगनेन एड्स का सस्ता, सरल और कारगर उपचार साबित होने वाला है।
अलसी में 27 प्रतिशत घुलनशील (म्यूसिलेज) और अघुलनशील दोनों ही तरह के फाइबर होते हैं अतः अलसी कब्ज़ी, मस्से, बवासीर, भगंदर, डाइवर्टिकुलाइटिस, अल्सरेटिव कोलाइटिस और आई.बी.एस. के रोगियों को बहुत राहत देती है। कब्जी में अलसी के सेवन से पहले ही दिन से राहत मिल जाती है। हाल ही में हुई शोध से पता चला है कि कब्ज़ी के लिए यह अलसी इसबगोल की भुस्सी से भी ज्यादा लाभदायक है। अलसी पित्त की थैली में पथरी नहीं बनने देती और यदि पथरियाँ बन भी चुकी हैं तो छोटी पथरियाँ तो घुलने लगती हैं।
अलसी त्वचा की बीमारियों जैसे मुहाँसे, एग्ज़ीमा, दाद, खाज, खुजली, छाल रोग, बालों का सूखा व पतला होना, बाल झड़ना आदि में काफी असरदायक है। अलसी में पाये जाने वाले ओमेगा-3 बालों को स्वस्थ, चमकदार व मजबूत बनाते हैं। अलसी खाने वालों को कभी भी रुसी नहीं होती है। अलसी त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, व गोरा बनाती है। नाखूनों को स्वस्थ व सुंदर बनाती हैं। अलसी खाने व इसके तेल की मालिश से त्वचा के दाग, धब्बे, झाइयाँ, झुर्रियाँ दूर होती हैं। अलसी आपको युवा बनाये रखती है। आप अपनी उम्र से काफी वर्ष छोटे दिखते हो। अलसी उम्र बढ़ाती हैं।
अलसी हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। गठिया, गाउट, मोच आदि में अत्यंत लाभकारी है। ओमेगा-3 से भरपूर अलसी यकृत, गुर्दे, एडरीनल, थायरायड आदि ग्रंथियों को ठीक से काम करने में सहायक होती है। अलसी ल्यूपसनेफ्राइटिस और अस्थमा में राहत देती है।
अलसी हमारे मन को शांत रखती है, इसके सेवन से चित्त प्रसन्न रहता है, विचार अच्छे आते हैं, तनाव दूर होता है, बुद्धिमत्ता व स्मरण शक्ति बढ़ती है तथा क्रोध नहीं आता है। अलसी के सेवन से मन और शरीर में एक दैविक शक्ति और ऊर्जा का प्रवाह होता है। अलसी एल्ज़ीमर्स, मल्टीपल स्कीरोसिस, अवसाद ( Depression ), माइग्रेन, शीज़ोफ्रेनिया व पार्किनसन्स आदि बीमारियों में बहुत लाभदायक है। गर्भावस्था में शिशु की आँखों व मस्तिष्क के समुचित विकास के लिये ओमेगा-3 अत्यंत आवश्यक होते हैं।
ओमेगा-3 से हमारी नज़र अच्छी हो जाती है, रंग ज्यादा स्पष्ट व उजले दिखाई देने लगते हैं। आँखों में अलसी का तेल डालने से आँखों का सूखापन दूर होता है और काला पानी व मोतियाबिंद होने की संभावना भी बहुत कम होती है। अलसी बढ़ी हुई प्रोस्टेट ग्रंथि, नामर्दी, शीघ्रपतन, नपुंसकता आदि के उपचार में महत्वपूर्ण योगदान देती है।
अलसी ब्लड शुगर नियंत्रित रखती है, डायबिटीज़ के शरीर पर होने वाले दुष्प्रभावों को कम करती हैं। चिकित्सक डायबिटीज़ के रोगी को कम शर्करा और ज्यादा फाइबर लेने की सलाह देते हैं। अलसी व गेहूँ के मिश्रित आटे में 50 प्रतिशत कार्ब, 16 प्रतिशत प्रोटीन व 20 प्रतिशत फाइबर होते हैं। यानी इसका ग्लायसीमिक इन्डेक्स गेहूँ के आटे से काफी कम होता है। डायबिटीज़ के रोगी के लिए इस मिश्रित आटे से अच्छा भोजन क्या होगा? मोटापे के रोगी को भी बहुत फायदा होता है। अलसी में फाइबर की मात्रा अधिक होती है। इस कारण अलसी सेवन से लंबे समय तक पेट भरा हुआ रहता है, देर तक भूख नहीं लगती है। यह बी.एम.आर. को बढ़ाती है, शरीर की चर्बी कम करती है और हम ज्यादा कैलोरी खर्च करते हैं।
डॉ. योहाना बुडविज की चर्चा के बिना अलसी का कोई भी लेख अधूरा रहता है। ये जर्मनी की विश्व विख्यात कैंसर वैज्ञानिक थी, जिन्होंने अलसी के तेल, पनीर, कैंसर रोधी फलों और सब्ज़ियों से कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया। उन्होंने सभी प्रकार के कैंसर, गठिया, हृदयाघात, डायबिटीज आदि बीमारियों का इलाज अलसी के तेल व पनीर से किया। इन्हें 90 प्रतिशत से ज्यादा सफलता मिलती थी। इसके इलाज से वे रोगी भी ठीक हो जाते थे जिन्हें अस्पताल में यह कहकर डिस्चार्ज कर दिया जाता था कि अब कोई इलाज नहीं बचा, सिर्फ दुआ ही काम आयेगी। अमेरीका में हुई शोध से पता चला है कि अलसी में 27 से ज्यादा कैंसररोधी तत्व होते हैं। डॉ. योहाना का नाम नोबेल पुरस्कार के लिए 7 बार चयनित तो हुआ पर उन्हें मिला नहीं क्योंकि उनके सामने शर्त रखी गई थी कि वे अलसी पनीर के साथ-साथ कीमोथेरेपी व रेडियोथेरेपी भी काम में लेंगी जो उन्हें मंजूर नहीं था।
अलसी बॉडी बिल्डर के लिए आवश्यक व संपूर्ण आहार है। अलसी में 20 प्रतिशत आवश्यक अमाइनो एसिड युक्त अच्छे प्रोटीन होते हैं। प्रोटीन से ही मांस-पेशियाँ बढ़ती हैं। अलसी भरपूर शक्ति देती है। कसरत के बाद मांस पेशियों की थकावट चुटकियों में ठीक हो जाती है। बॉडी बिल्डिंग पत्रिका मसल मीडिया 2000 में प्रकाशित आलेख “बेस्ट आँफ द बेस्ट” में अलसी को बॉडी के लिए सुपर फूड माना गया है। मि. डेकन ने अपने आलेख ‘आँस्क द गुरु’ में अलसी को नम्बर वन बॉडी बिल्डिंग फूड का खिताब दिया। अलसी हमारे शरीर को भरपूर ताकत प्रदान करती है, शरीर में नई ऊर्जा का प्रवाह करती है तथा स्टेमिना बढ़ाती है।
हमें प्रतिदिन 30-60 ग्राम अलसी का सेवन करना चाहिये। रोज 30-60 ग्राम अलसी को मिक्सी के चटनी जार में पीसकर आटे में मिलाकर रोटी, पराठा आदि बनाकर खायें। इसकी ब्रेड, केक, कुकीज़, आइसक्रीम, लड्डू आदि स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाये जाते हैं। अंकुरित अलसी का स्वाद तो कमाल का होता है। इसे आप सब्ज़ी, दूध, दही, दाल, सलाद आदि में भी डाल कर ले सकते हैं। बेसन में भी मिला कर पकोड़े, कढ़ी, गट्टे आदि व्यंजन बनाये जा सकते हैं। इसे पीसकर नहीं रखना चाहिये। इसे रोजाना पीसें। ये पीसकर रखने से खराब हो जाती है। बस 30 ग्राम का आंकड़ा याद रखें। अलसी के नियमित सेवन से व्यक्ति के जीवन में चमत्कारी कायाकल्प हो जाता है।