शुक्रवार, 19 सितंबर 2014
गुरुवार, 18 सितंबर 2014
बुधवार, 17 सितंबर 2014
गुना-भाग करना
गुना-भाग करना : धोखना। (विचार करना)
करम गति ला आज तक कोनो नइ टारे हे भागचंद, एमा तोर गुना-भाग करना हा बेकार हे।
मंगलवार, 16 सितंबर 2014
गुन ला बोरना
गुन ला बोरना : नमक हराम होना। (यथावत)
अपन जान के जेकर भल बर मरबे तउने हा गुन ला बोर देथे। अइसन मनखे हा मोला नइ सुहाय।
गुन नइ लगना
गुन नइ लगना : नमक हराम होना। (यथावत)
ओकर बिपत मा गाँव के कोनो साथ नइ देवत रिहिसे, तब गौंटिया हा खड़े होइस। तभो ले ओला गुन नइ लगिस।
गुन करना
गुन करना : लाभ होना (यथावत)
जुड़-सरदी मा परसराम हा सकपकागे रिहिसे। बुढ़ंतरा गोली खइस तउने हा ओला गुन करिस।
गिरहा भगाना
गिरहा भगाना : बीपत ला टारना। (संकट टालना)
बाम्हन-भठरी के भगाए ले गिरहा भाग जथे, तब उँकरे घर के गिरहा कइसे नइ भागे।
गिरहा टोरना
गिरहा टोरना : समसिया ला सुलझाना। (संकट का निवारण करना)
कोनो हा काकरो गिरहा ला नइ टोरे मितान, सबो अपन सुवारत मा भटकत हें।
गिरत-हपटत
गिरत-हपटतः (i) बड़ मसकुल ले। (बड़ी कठिनाई से )
में तो तुँहर मन के मयाँ खातिर सियाना उम्मर मा घलो गिरत-हपटत आ जथों बेटा, तुमन तो अतको सुध नइ लेवौ।
(ii) जल्दबाजी मा। (जल्दबाजी में )
अत्तिक का लउहा रिहिसे तेमा गिरत-हपटत आवत हस भोलाराम, थीर-थार ले आए रतेस।
गियान झारना
गियान झारना : हुसियारी बघारना। (होशियारी दिखाना)
खुदे के चाल मा कीरा परे हे अउ दूसर बर गियान झारथे तब कोन भाही।
गिधवा आँखी के होना
गिधवा आँखी के होना : नजर तेज होना। (यथावत)
रखवार हा डोकरा हो गेहे ते का भइस, गिधवा आँखी के हे; दुरिहच्च ले देख डारथे।
गिधली ओरमना
गिधली ओरमना : सिमसाम होना। (सूना होना)
बेटा मन तो नउकरी मा निकल गेहें। गनपत राम एके झन राहय। ओकर मरे ले घर मा गिधली ओरम गेहे।
गाल ललियाना
गाल ललियाना : सुख-सुविधा मा रहना। (यथावत)
दारु पी के धुर्रा-माटी मा घोन्डे राहय तउने बुधारु ला देख नउकरी मिलिस ते कइसे गाल ललिया गेहे।
सोमवार, 15 सितंबर 2014
गाल बजाना
गाल बजाना : झगरा करना। (विवाद करना)
सब हा अपन-अपन हक मा राजी-खुसी रतिन ते गाल बजाए के नौबते नइ परतिस।
गाय के गोड़ मा बछरु बाँधना
गाय के गोड़ मा बछरु बाँधना : निगरानी मा राखना। (नियंत्रण में रखना)
लइका मन ला सहीं रद्दा मा लाने खातिर गाय के गोड़ मा बछरु बाँधे के उदीम घलो करे ला परथे।
रविवार, 14 सितंबर 2014
गाय नइते गाय के धरसा देखना
गाय नइते गाय के धरसा देखना : खोज-खभर लेना। (यथावत)
लोग-लइका मन मँड़ई गेहें, मुँधियार होगे आए नइ हें। एकरे सेती गाय नइ ते गाय के धरसा देख लेथों कहिके निकले हँव।
गाज गिरना
गाज गिरना : भारी बिपत आना। (बड़ी विपत्ति आना)
बड़े-बड़े ला देखेहन बनेच-बने मा गरजथें। जब खुद के ऊपर गाज गिरथे तब उँकरो बक्का नइ फूटे।
गहना मा तोपना या लादना
गहना मा तोपना या लादना : तन भर गहना पहिराना। (सवाँगा गहना पहनाना)
गौंटिया के बेटी राधा ला ओकर ससुरार वाले मन गहना मा लाद डरे हें। धन वो बेटी के भाग जउन ला अइसन भरे-पूरे मयाँरूक ससुरार मिले हे।
गली कस कुकुर किंजरना
गली कस कुकुर किंजरना : फोकटइया घूमना। (व्यर्थ घूमना)
गली कस कुकुर किंजरे ले पेट नइ भरे। पेट भरे बर जाँगर के टूटत ले कमाए ला परथे।
गली कस कुकुर किंजरे ले पेट नइ भरे। पेट भरे बर जाँगर के टूटत ले कमाए ला परथे।
गला बनना
गला बनना : लय-ताल के साथ गाना। (यथावत)
चाँवरा के गवइया गनेसिया के गला हा अइसे बन गेहे के बड़े-बड़े कलाकार मन सुनत रहि जथें।
गला घोंटना
गला घोंटना : (i) पइसा नइते धन लूटना। (पैसे या धन लूटना)
आज फेर काकर गला घोंट के आगेस रे, ए पइसा कहाँ के?
(ii) गला मसक के मार डारना। ( गर्दन दबा कर मार डालना)
पइसा के लालच मा चोर मन सेठ के गला घोंट डरिन।
गला फँसाना
गला फँसाना : बिपत मा डारना। (विपत्ति में डालना)
में ओला सेठ ले चलाव पइसा का देवा देंव, ओ तो मोर गला फँसा दिस।
गरु-गरु गोठियाना
गरु-गरु गोठियाना : दुख के गोठ गोठियाना। (दुख की बातें करना)
कोनो ला गरु-गरु गोठियाए के सउँख नइ राहय फेर समे जब आ जथे तब गोठियाए ला परथे।
गरुआ होना
गरुआ होना : निच्चट सिधवा होना। (एकदम सरल स्वभाव का होना)
आज के जबाना मा गरूआ होए ले घलो काम नइ चले, थोर-बहुँत तीन-पाँच करे बर आना चाही।
आज के जबाना मा गरूआ होए ले घलो काम नइ चले, थोर-बहुँत तीन-पाँच करे बर आना चाही।
गरी बाँधना
गरी बाँधना : बिहाव करना। (विवाह करना)
सियान मन के जबाना मा नाननान लइका मन ला गरी बाँध देत रिहिन हें। एकरे सेती परिवार हा नंगत के बाढ़ जाय।
गरहन तीरना
गरहन तीरना : अपंग होना। (यथावत)
होनी तो भगवान के हाँत मा हे भइया, आज बने हाबन, काली कोन ला गरहन तीर दीही तेकर का ठिकाना।
गर फँसना
गर फँसना : बँधाना नइते बिपत मा पड़ना। (बंध जाना या संकट में पड़ना)
ददा हा बिमार परगे, असपताल मा रेहे ला परथे; मोर तो गर फँसगे।
गने गनाय होना
गने गनाय होना : एककन होना। (अत्यल्प होना)
एसो मखना हा गने गनाय चार ठन फरे रिहिसे मनटोरा, तउनो हा देवारी बेखन मँगनी मा सिरागे।
गनती भर के
गनती भर केः नाँव गइंता (नाम मात्र के लिए)
गौंटिया घर एक कोरी गाय हे ते का भइस, गनती भर के ताय। सबो मिला के दू किलो दूध नइ होवय।
शनिवार, 13 सितंबर 2014
गनती नइ होना
गनती नइ होना : बिन छंता के होना। (पूछ-परख नहीं होना)
आज तो पइसा के जबाना हे। पइसा नइ हे ते बड़े-बड़े के घलो गनती नइ होवय।
आज तो पइसा के जबाना हे। पइसा नइ हे ते बड़े-बड़े के घलो गनती नइ होवय।
गनती नइ होना
गनती नइ होना : बिन छंता के होना। (पूछ-परख नहीं होना)
आज तो पइसा के जबाना हे। पइसा नइ हे ते बड़े-बड़े के घलो गनती नइ होवय।
आज तो पइसा के जबाना हे। पइसा नइ हे ते बड़े-बड़े के घलो गनती नइ होवय।
गदहा ला ददा कहना
गदहा ला ददा कहना : मुरूख के खुसामद करना। (मूर्ख की खुशामद करना)
अपन हुसियारी के जादा घमंड झन कर, बखत परे मा गदहा ला ददा केहे ला परथे, वतका बेर जम्मों हुसियारी हा दिख जही।
गति बनना
गति बनना : (i) मुक्ति मिलना। (यथावत)
रात-दिन पाप कमा के दान करे ले गति नइ बने, करम सुधारे ला परथे।
(ii) अच्छा होना। (यथावत)
पइसा धरे रेहेन ते गति बनगे, नइ ते भूख मा लथर जाए रतेन।
गत बिगाड़ना
गत बिगाड़ना : हालत बिगाड़ना। (यथावत)
लइका ए, गलती हो जथे, फेर वाह रे आदमी मार-मार के लइका के गत बिगाड़ डरिस।
गत बनाना
गत बनाना : (i) बेवस्था करना। (व्यवस्था करना)
ते तो नउकरी लगवा के अपन बेटा के गत बना डरे बैसाखू, बने अकल के काम करेस।
(ii) हालत बिगाड़ना (यथावत)
लकलक ले सुंदर रिहिसे लइका हा। मोसी दाई अइस तब देखत हस लइका के का गत बना डरिस तेला।
गड़े मुरदा उखानना
गड़े मुरदा उखानना : बीते बात ला गोठियाना। (बीती हुई बातों को बोलना)
जउन ला ठेनी बिसाना हे तउन तो गड़े मुरदा उखानबे करही।
गड़हरा भराना
गड़हरा भराना : जीय त पटा जाना। (जिंदा दफन हो जाना)
खदान के काम अइसे हे के माटी के धसके ले कतको कमइया मन गड़हरा भरा जथें।
गुरुवार, 11 सितंबर 2014
गड़ई करना
गड़ई करना : (i) चापलूसी करना (यथावत)
पर के झगरा मा पर हा गड़ई करही, तउन तो चमरछौंकन मा परबे करही।
(ii) चारी करना। (निंदा करना)
ते हमला का खवा डरेस तेमा हमर गड़ई करत हस, अपन घर ला तो सम्हाँल ले ले।
गड्ढा खनना
गड्ढा खनना : नकसान पहुँचाए के उदीम करना। (नुकसान पहुँचाने का प्रयास करना)
जउन हा बिरान बर गड्ढा खनथे, उही गड्ढा मा एक दिन खुदे झपाथे।
गठरी मा पइसा होना
गठरी मा पइसा होना : पास मा पइसा होना। (पास में रूपये होना)
गठरी मा पइसा के राहत ले उदाली मार ले बिरजू, उरक जही तब कइसे करबे?
गठरी बाँधना
गठरी बाँधना : (i) याद रखना (यथावत)
जउन हा सिखावन बात ला गठरी बाँध के राखथे, ओकरे बनथे।
(ii) जाए के तैयारी करना (जाने की तैयारी करना) जउन हा जीए बर चार पइसा कहुँचो कमा लेबो अइसे सोंच थे ओहा अनियाँय के कभू साथ नइ देवय अउ अपन गठरी ला बाँध के राखथे।
गज भर के छाती होना
गज भर के छाती होना : (i) हिम्मती होना। (यथावत)
बिपत तो जिनगी के कसौटी आए। ये कसौटी मा खरा उतरे बर गज भर के छाती होना चाही।
(ii) गरब होना। (गर्व होना)
औलाद के नाँव जब देस-दुनियाँ मा फैलथे तब दाई-ददा के घलो गज भर के छाती हो जथे।
गउवा के पूछी छुआना
गउवा के पूछी छुआना : गाय के किरिया खवाना (गाय की कसम खिलाना)
ओ तो जनम के लबरा ए वाजिब बात ला नइ बताय। गउवा के पूछी छुआबे तभे सच ला बताही।
मंगलवार, 9 सितंबर 2014
गंगा नहाना
गंगा नहाना : बिन चिंता के होना। (निश्चिंत होना)
पीलू राम हा अपन दूनों लइका के बिहाव ला संघरा निकाल के बिहाव के झमेला ले गंगा नहा डरिस।
पीलू राम हा अपन दूनों लइका के बिहाव ला संघरा निकाल के बिहाव के झमेला ले गंगा नहा डरिस।
शनिवार, 6 सितंबर 2014
गंगाजल उचाना
गंगाजल उचाना : किरिया खाना। (कसम खाना)
सोनसाय अपन मँहतारी के आघू मा गंगाजल उचाके किहिस-’’दाई..! में हा अब मंद नइ पियौं!’’
सोनसाय अपन मँहतारी के आघू मा गंगाजल उचाके किहिस-’’दाई..! में हा अब मंद नइ पियौं!’’
गुरुवार, 4 सितंबर 2014
खोटनी भाजी कस खोंट-खोंट के खाना
खोटनी भाजी कस खोंट-खोंट के खाना : पर भरोसा रहना। (परावलंबी होना)
सहिंच मा गरीब रतिस तब तो बाते नइ रिहिसे, फेर अत्तेक धनवान होके घलो पर ला खोटनी भाजी कस खोंट-खोंट के खाथे। अइसन कंजूस ले भगवान बचाए।
खोज-खोज के मरना
खोज-खोज के मरना : खोज-खोज के परसान होना। (ढूँढ-ढूँढ कर परेशान होना)
बाबू के ददा ला कहुँ पइसा मिलिस ताँहले ओकर पाँव घर मा नइ माढ़े। बखत परे मा असनो मनखे ला खोज-खोज के मरउल ताय।
''दार-भात खिचरी''
मोर भाखा कतेक गुरतुर, कतेक मिठास ये बात ल तो सिरिफ छत्तीसगढ़ियाच मन हर जानथंय। जम्मो भाखा बोली ले सुरहि गाय कस सिधवी बिन कपट के निच्चट सांत रूप म हावय। ''अंधवा जभे खीर खाथे तभे, पतियाथे।'' इही कहावत ह मोर छत्तीसगढ़ी भाखा ऊपर बरोबर बईठय। बोले म रमायन, गीता के बानी कस, सुने म महतारी के लोरी कस दुलार हावय हमर छत्तीसगढ़ी भाखा म। नवा दुलहिन के पइरी के घुंघरू कस नीक भाखा म करमा, ददरिया, चंदैनी के सुर म मादर, ढोलक, गड़वा बाजा के थाप ह परथे त लागथे ए छत्तीसगढ़ी भाखा बोली ह जम्मो भाखा बोली ल पचर्रा बना
दिस। ए भाखा के नावेच हावय छत्तीसगढ़ी! छत्तीस आगर छत्तीस कोरी मनखे मन मिलके ए भाखा ल गढ़े होंही तभे छत्तीसगढ़ी भाखा बोली नोहय, ए ह हमर छत्तीसगढ़ के जम्मो संसकिरती के दरसन आय। ऐंठी, तुर्रा, गजरा, पंडवानी, बिहाव-भड़ौनी, कमरा-खुमरी, नोई दुहना, के चिन्हार, इही छत्तीसगढ़ी भाखा ह कराथे। ए भाखा ह तो छत्तीसगढ़ के परान आय। जेन दिन ए भाखा नंदा जाही वो दिन छत्तीसगढ़ घलो मेटा जाही।
दिस। ए भाखा के नावेच हावय छत्तीसगढ़ी! छत्तीस आगर छत्तीस कोरी मनखे मन मिलके ए भाखा ल गढ़े होंही तभे छत्तीसगढ़ी भाखा बोली नोहय, ए ह हमर छत्तीसगढ़ के जम्मो संसकिरती के दरसन आय। ऐंठी, तुर्रा, गजरा, पंडवानी, बिहाव-भड़ौनी, कमरा-खुमरी, नोई दुहना, के चिन्हार, इही छत्तीसगढ़ी भाखा ह कराथे। ए भाखा ह तो छत्तीसगढ़ के परान आय। जेन दिन ए भाखा नंदा जाही वो दिन छत्तीसगढ़ घलो मेटा जाही।
संस्कृति अउ तिहार ह तो छत्तीसगढ़ के माई तिजोरी म भरे हावय। माता पहुंचनी के सीतला पूजा, अक्ती, ठाकुर देव पूजा सांहड़ा देव पूजा, देवारी के गौरी-गौरा, घरो घर घूमत छेरछेरा मंगइया के होली, मेला-मड़ई जइसन या पिरीत। अउ अपन आस्था ले जुड़े अइसन तिहार कोनो जगा देखे बर नई मिलय। इंहा के तिहार सब जगा ले घुच के रहिथे। बिहाव मंगौनी के करी लाड़ू, मोहरी दफरा निसान के बघवा कस गरजई, भड़ौनी, मायसरी लूगरा, पर्रा झुलौनी, मांदी भात, आजी गोंदली ये जम्मो ह हमर छत्तीसगढ़िया होय के पहिचान आय। लईका होय म छट्ठी-बरही, कांके पानी रिवाज ह घर म हरिक लान देथे। नानपन के गंगाजल, गजामूंग, महापरसाद, भोजली-जंवारा ह दोस्ती के पिरीत ल एक ठन गांठ म बांध देथय। दाई-ददा, कका-बबा, ममा-दाई, भौजी, भांटो केहे के चलन इहेंच हे।
छत्तीसगढ़ के पहिराव ओढ़ाव दुरिहाच ले चिनहा जाथे। गरवा चरावत राउत भइया के चंदैनी गोंदा कस रिगबिग ले कुरता, सलूखा, सादा, पिंयर पंछा मुड़ म छोटकुन खुमरी, हाथ म तेंदू सार के लउठी ह सउंहत किसन भगवान के दरसन करा देथे। सुआ पांखी लूगरा पहिरे सुवा, ददरिया गावत मोटियारी मन ल मोह लेथे। बाबू जात के हाथ के ढेरकऊवा, कान के बारी अउ माई लोगन के हाथ के अंईठी, अंगरी के मुंदरी, गोड़ के पइरी, कड़ा बिछिया, गर के सुंता, तुर्रा, गजरा, बइहां के पहुंची, कनिहा के करधन, कान म खिनवा पहिरे दाई-बहिनी मन ल देख के लागथे सिरतोन म जम्मो गहना-गुरिया ल सिंगार के लछमी दाई ह सउंहत हमर छत्तीसगढ़ म बइठे हावय। तभे तो छत्तीसगढ़ ल ''धान के कटोरा'' केहे जाथे। गमछा, लुंगी, बंडी म लपटाय बनिहार किसनहा मन धरती दाई के सेवा बजावत घातेच सुग्घर लागथे। लुगरा, पोलखा पहिरे मुड़ ल ढांके दाई-दीदी मन ल देखके लागथे कि जम्मो भारत भर के इात अउ संस्कार ह इही छत्तीसगढ़ म बसे हावय।
जौन किसम ले हम छत्तीसगढ़िया मन के जम्मो रासा-बासा अलग हावय उही किसम ले हमर खानपान घलो अलग हावय। बटकी म बासी चुटकी म नून नहीं त नून अउ मिरचा के भुरका चटनी कोन छत्तीसगढ़िया ल नई सुहावय। तिंवरा भाजी के गुरतुर सुवाद तो हमींच मन लेथन। देवारी के फरा, होरी के अइरसा, तीजा के ठेठरी-खुरमी, हरेली के चीला, कस खाजी, रोटी-पीठा भला हमर छोंड़ दूसर मन देखे होहीं? तभे तो हम धरती म सोना उपजाए के ताकत राखथन। अथान, चटनी के ममहई ह मुंहू म पानी लान देथे। चना-बटुरा के होरा, तेंदू-चार के पाका, जिमीकांदा के खोईला, रखिया के बरी के सुवाद ल हम छत्तीसगढ़िया ल छोंड़ के कोनो दूसर पाय होही?
जम्मो छत्तीसगढ़ के दरसन तो सिरिफ इंहा के लोककला म देखे बर मिलथे। रात भर गली के धुर्रा-माटी म रमंज-रमंज के हंसई ह मनोरंजन संग गियान के भंडार घलो होथे। सुवा, करमा, ददरिया, राऊत नाचा, पंथी ह तो इहां के थाती आय। ढोला-मारू, लोरिक चंदा ह इहां परेम के संदेस देथे त भरथरी, पंडवानी ह भक्ति भाव म बुड़ो देथे। ये सब हमर लोक कला के नकल कोनो नई कर सकय। भला हमर पंडवानी ल कोनो हिन्दी, अंगेरजी म गा सकत हें का? समे के संग अब यहू मन छत्तीसगढ़ के इतिहास बनतेच जात हे। हमन दूसरे के देखा-सीखी नकल उतार-उतार के एकर सुध्दता बिगाड़ के ''दोबी के कुकुर कस घर के न घाट के'' बरोबर बना डारत हन। आजकल छत्तीसगढ़ी एलबम ह तो बम गिरातेच हावय अउ छालीवुड ह तो इहां के संसकिरती के, लोककला के फोकला निकालत हावय।
हमर देस लोकतंत्र देस हावय। हम ल जम्मो धरम ल माने के अधिकार, भाखा, खाए-पिए के हक हावय। त एकर पाछू इंहा के संसकिरती, भाखा ल खिचरी बना देबो का? इंहा के बिहाव के नेंग-जोग, चुलमाटी, पस्तेला, भड़ौनी, छट्ठी-बरही जेन ल मेटाय बर हमन हमरेच गोंड़ म टंगिया मारत हन। इंहा के जम्मो चिनहा बाखा, संस्कार ल हमर हाथ म गंवावत जावत हन त काल के दिन म ये सब ल गोड़ म खोजबो त पाबो? का छत्तीसगढ़ के इही दुरगति करे बर हमन छत्तीसगढ़ म जनम धरे हन? का हमन ल छत्तीसगढ़िया कहाए बर, छत्तीसगढ़ी बोले बर सरम लागथे? ''घर जोगी जोगड़ा'' कस ये भुइंया के हाल होवत जात हे। कभू सोंचे हन ए म हमर कतका हाथ हे? का ए भाखा, संस्कृति ल सहेज के राखे के जुवाबदारी हमर नई बनय? का ए भाखा, संस्कृति ह देहतिया, गंवईहा मन के चिन्हारी आय? का हमन हमर भाखा, संस्कृति लोककला ल दूसर भाखा-बोली, पहिराव, ओढ़ाव, संस्कार संग मिंझार के ''दार-भात खिचरी'' बना देबो? फेर हमर का चिन्हारी रइही? अगर दार-भात खिचरी बनानच हे त अपन भाखा के, बोली के लोककला के, संस्कृति के, खान-पान के, पहिराव-ओढ़ाव के खिचरी बनावन अउ छत्तीसगढ़ के आत्मा ल जियत राखन। जोहार छत्तीसगढ़।
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देशबंधु/मड़ई ले संकलित :
भागीरथी आदित्य ग्राम-अन्दोरा, गरियाबंद
बुधवार, 3 सितंबर 2014
सोमवार, 1 सितंबर 2014
खोज-खभर नइ मिलना
खोज-खभर नइ मिलना : कोई संदेसा नइ मिलना। (कोई समाचार प्राप्त नहीं होना)
बीरु ला घर ले भागे अठोरिया हो गेहे, आज ले खोज-खभर नइ मिलत हे।
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आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!
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